पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२६९

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वासवी--(प्रार्थना करती है) दाता सुमति दीजिये ! मानव-हृदय-भूमि करुणा से सींचकर बोधन-विवेक-बीज अंकुरित कीजिये दाता सुमिति दीजिये ॥ [जीवक का प्रवेश] जीवक- -जय हो देव ! बिम्बसार-जीवक, स्वागत । तुम बड़े समय पर आये ! इस समय हृदय बड़ा उद्विग्न था। कोई नया समाचार सुनाओ। जीवक-कौशाम्बी के समाचार तो लिखकर भेज चुका हूँ। नया समाचार यह है कि मागन्धी का सब षड्यन्त्र खुल गया और राजकुमारी पद्मावती का गौरव पूर्ववत् हो गया। वह दुष्टा मागन्धी महल मे आग लगाकर जल मरी । बिम्बसार-बेटी पद्मा | प्राण बचे। इतने दिनों तक बडी दु.खी रही, क्यों जीवक? वायवी-और कोसन का क्या समाचार है ? विरुद्धक को भाई ने क्षमा किया पा नहीं ? वह आजकल कहां है जीवक-वही तो काशी का शैलेन्द्र है। उसने मगध-नरेश-नही-नहीं- कुमार कुणीक से मिलकर कोसल सेनापति बन्धुल को मार डाला और स्वयं इधर- उधर विद्रोह करता फिर रहा है । वासवी-यह क्या है | भगवान् | बच्चो को यह क्या सूझी है ? क्या पही राजकुल की शिक्षा है? जीवक-और महाराज प्रसेनजित् घायल होकर रणक्षेत्र से लौट गये। इधर कोई और नयी बात हुई हो, तो मैं नहीं जानता। बिम्बसार-जीवक, अब तुम विश्राम करो। अब और कोई समाचार सुनने की इच्छा नहीं है । संमार-भर मे विद्रोह, संघर्ष, हत्या, अभिगेग, षड्यन्त्र और प्रतारणा है, यही सब तुम सुनाओगे, ऐसा मुझे निश्चय हो गया। जाने दो। एक शीतल नि.श्वास लेकर तुम विश्व के वात्याचक्र से अलग हो जाओ और इस पर प्रलय के सूर्य की किरणो से तप कर गलते हुए गीले लोहे की वर्षा होने दो। अविश्वास की आंधियों को सरपट दौडने दो। पृथ्वी के प्राणियो मे अन्याय बढे, जिससे दृढ़ होकर लोग अनीश्वरवादी हो जाये, और प्रतिदिन नयी समस्या हल करते-करते कुटिल कृतघ्न- जीव मूर्खता की धूल उड़ावे-और विश्वभर मे इस पर एक उन्मत्त अट्टाहास हो। (उन्मत्त भाव से प्रस्थान) दृश्या न्त र 1 अजातशत्रु : २४९