पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२९५

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षष्ठ दृश्य [पथ में वार्तालाप करते हुए दो नागरिक] पहला-किसने शक्ति का ऐसा परिचय दिया है ! सहनशीलता का ऐसा प्रत्यक्ष प्रमाण-ओह ! दूसरा-देवदत्त का शोचनीय परिणाम देखकर मुझे तो आश्चर्य हो गया। जो एक स्वतन्त्र संघ स्थापित करना चाहता था-उसकी यह दशा पहला-जब भगवान् से भिक्षुओं ने कहा कि देवदत्त आपका प्राण लेने आ रहा है, उसे रोकना चाहिये। दूसरा-तब ? ? पहला--तब उन्होने केवल यही कहा कि घबराओ नही, देवदत्त मेरा कुछ अनिष्ट नहीं कर सकता। वह स्वयं मेरे पास नही आ सकता, उममे इतनी शक्ति नही क्योकि उसमे द्वेष है। दूसरा-फिर क्या हुआ पहला--यही कि देवदत्त समीप आने पर प्यास के कारण उस सरोवर में जल पीने उतरा। कहा नही जा सकता कि उसे क्या हुआ-कोई ग्राह पकड ले गया कि उसने लज्जा से डूब कर आत्महत्या कर ली। वह फिर न दिखायी पड़ा। दूसरा-आश्चर्य | गौतम की अमोघ शक्ति है। भाई, इतना त्याग तो आज तक देखा नही गया। केवल पर-दु ख-कातरता ने किस प्राणी से गज्य छुडवाया है ! अहा, वह शान्त मुखमण्डल स्निग्ध गम्भीर दृष्टि, किसको नही आकर्षित करती। कैसा विलक्षण प्रभाव है । पहला-तभी तो बड़े-बड़े सम्राट् लोग विनत होकर उनकी आज्ञा का पालन करते है। देखो, यह भी कभी हो सकता था कि राजकुमार विरुद्धक पुन. युवराज बनाये जाते ? भगवान् ने समझा कर महाराज को ठीक कर ही दिया और वे भानन्द से युवराज बना दिये गये। दूसरा-हाँ जी, चलो, आज तो श्रावस्ती भर मे महोत्सव है, हम लोग भी घूम-घूम कर आनन्द ले । पहला--श्रावस्ती पर से आतंक का मेघ टल गया, अब तो आनन्द-ही-आनन्द है। इधर राजकुमारी का ब्याह भी मगधराज से हो गया। अब युद्ध-विग्रह तो कुछ दिनों के लिए शान्त हुए। चलो हम लोग भी महोत्सव में सम्मिलित हो। (एक ओर से दोनों जाते हैं, दूसरी ओर से वसन्नक का प्रवेश) वसन्तक-फटी हुई बांसुरी भी कही बजती है । एक कहावत है कि 'रहे मोची-के-मोची।' यह सब ग्रहो की गड़बडी है, ये एक बार ही इतना बड़ा काण्ड अजातशत्रु : २७५