पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३४६

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धर्म-विरुद्ध कार्य होगा, तो मैं पुरोहिती छोड़ दूंगा। अब मेरे लिये क्या आशा है ? मैं पिताजी को क्या उत्तर- च्यवन-(हंसकर) शीला तुम्हारे साथ जायगी। उसे कोई कष्ट नहीं होगा। वह दिन में दो बार वहाँ आ-जा सकती है। मणिमाला-पिता जी ! तो फिर मैं सबको एकत्र करूं ? सखियां इसकी विदाई करेगी। च्यवन-हाँ पुत्रियो, तुम अपने मंगलाचार कर लो ! (सब का प्रस्थान) दृश्या न्त र सप्तम दृश्य [तक्षशिला की एक घाटी में आर्य-सेना अवरोध किये हुये है, चण्ड भार्गव का प्रवेश चण्ड भार्गव-वीरो, तुमने आर्यों के प्रचण्ड भुज-दण्ड का प्रताप दिखला दिया। सम्राट् ने स्कन्धावार से तुम लोगो को बधाई भेजी है। इन पतित और दस्यु अनार्य नागों ने जान लिया कि निष्ठुरता और क्रूरता मे भी आर्य-शक्ति पीछे नही है। वह मित्रों के साथ जितना स्नेह दिखलाती है, उतना ही शत्रुओं को कठोर दण्ड देना भी जानती है । आज के बन्दी कहां हैं ? एक सैनिक-अभी लाता हूँ। (जाकर बन्दी नागों को ले आता है) चण्ड भार्गव-क्यों, अब तुम्हारी क्या कामना है ? दौरात्म्य छोडकर, आर्य- साम्राज्य की शान्त प्रजा होकर रहना तुम्हे स्वीकृत है या नहीं ? तुम दस्युवृत्ति छोड़ कर सभ्य होना चाहते हो यां नही ? एक नाग-आर्य सेनापति ! दस्यु कौन है, हम या तुम? जो शान्तिप्रिय जनता पर अपना विक्रम दिखाने का अभिमान करता है, जो 'स्वाहा' मन्त्र पढ़कर गांव-के- गांव जला देना अपना धर्म समझता है, जो एक की प्रतिहिंसा का प्रतिशोध अनेक से लेना चाहता है, वह दुरात्मा है या हम ? चण्ड भार्गव-हूँ ! इतनी ऊर्जस्विता । नाग-क्यों नही | अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के विचार से में मरने के लिए रणभूमि में आया था। यदि यहां आकर बन्दी हो गया, तो क्या मैं लज्जित होऊँ ? हां, दुःख इस बात का है कि तुम्हे मारकर नही मर सका। चण्ड भार्गव-तुम जानते हो कि इसका क्या परिणाम होगा ? नाग-वही जो औरों का हुआ है | होगा रण-चण्डी का विकट ताण्डव, आर्यों का स्वाहा-गान, और हमारे जीवन की आहुति ! नाग मरना जानते हैं। अभी वे ३२६ :प्रसाद वाङ्मय