पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३५२

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ध्यास--पुत्री शीला, तुम आर्य ललनाओं के समान ही अपने पति के सत्कर्मों में सहकारिणी बनो। शोला-भगवान् की जैसी आज्ञा ! इसी प्रकार आशीर्वाद देते रहिये । व्यास-नागराज कुमारी, अदृष्ट शक्ति ने तुम्हारे लिये भी एक बड़ा भारी कर्तव्य रख छोड़ा है, जो इस आर्य और अनार्य ही नही, किन्तु समस्त मानव-जाति के इतिहास में एक नया युग उत्पन्न करेगा। विश्वात्मा तुम्हें उसमें सफलता दे । मणिमाला-भगवन्, आशीर्वाद दीजिये कि ऐसा ही हो। व्यास-प्रिय वत्सगण, शुद्ध-बुद्धि की शरण में जाने पर वह तुम्हें आदेश करेगी, और सीधा पथ दिखलावेगी। जाओ, तुम सबका कल्याण हो, और सबका तुम लोगों के द्वारा कल्याण हो। सब-जो आज्ञा ! (सब प्रणाम करके जाते हैं) दृश्या न्त र द्वितीय दृश्य [प्रकोष्ठ में वपुष्टमा] वपुष्टमा-आर्यपुत्र अश्वमेध के व्रती हुए हैं। पृथ्वी का यह मनोहर उद्यान रक्त-रंजित होगा ! भगवन् ! क्या तुम भी बलि से प्रसन्न होते हो? यह तो बड़ा संकट है। मन हिचकता है, पर विवशता वही करने को कहती है। धर्म की आज्ञा और ब्राह्मणों का निर्णय है । बिना यज्ञ किये छुटकारा नही । कैसा आश्चर्य है। एक व्यक्ति की हत्या जो केवल अनजान मे गयी है, विधिविहित असंख्य हत्याओं से छुड़ायी जायगी ! अखण्डनीय कर्म-लिपि ! तेरा क्या उद्देश्य है, कुछ समझ में नही आता। प्रमदा-(प्रवेश करके) महादेवी की जय हो ! परम भट्टारक ने सन्देश भेजा है कि मैं गान्धार-विजय करके बहुत शीघ्र ही लोटता हूं। प्रिय अनुजों के साथ महादेवी यज्ञ-सम्भार का आयोजन करे । वपुष्टमा प्रमदा, जब से मैंने अश्वमेध का नाम सुना है, तब से मेरा हृदय कांप रहा है । न जाने क्या होने वाला है। प्रमदा-महादेवी, भगवान् सब कुशल करेगे। आप अपने हृदय को इतना दुर्बल बनाती है। सहस्रों राजकुमारों और श्रीमानों के मुकुटमणियों की प्रभा से ये पवित्र चरण रंजित होगे और इन्हें देखकर आर्यावर्त की समस्त लेलनायें उस माहात्म्य का उस गौरव का, उच्च कण्ठ से गान करेंगी। भला ऐसे सुअवसर पर आपको प्रसन्न होना चाहिये या उद्विग्न ? ३३२: प्रसाद वाङ्मय