पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३७७

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प्रथम अंक प्रथम दृश्य [फूलों का द्वीप, समुद्र का किनारा, वृक्ष की छाया में लेटी हुई कामना] कामना-उषा के अपांग मे जागरण की लाली है। दक्षिण-पवन शुभ्र मेघमाला का अञ्चल हटाने लगा। पृथ्वी के प्रांगण में प्रभात टहल रहा है। विशाल जल-राशि के शीतल अंक से लिपटकर आया हुआ पवन इरा द्वीप के निवासियों को कोई दूसरा सन्देश नही, केवल शान्ति का निरन्तर संगीत मुनाया करता है । सन्तोष ' युदय के समीप होने पर भी दूर है, सुन्दर है, केवल आलस के विधाम का स्वप्न दिखाता है । परन्तु अकर्मण्य सन्तोष से मेरी पटेगी? नही ! इस समुद्र में इतना हाहाकार क्यों है ? उँह, ये कोमल पत्ते तो बहुत शीघ्र तितर-बितर हो जाते है। (बिछे हुये पत्तों को बैठकर ठीक करती है) यह लो, इन डालों से छनकर आयी हुई किरणें इस समय ठीक मेरी आँखो पर पडेगी। अब दूसरा स्थान ठीक करूं, बिछावन छाया मे करूँ। (पत्तों को दूसरी ओर बटोरती है) घड़ी-भर चैन से बैठने मे भी झझट है। [दो-चार फूल वृक्ष से चू पड़ते हैं-व्यग्र होकर वृक्ष की ओर सरोष देखने लगती है तीन स्त्रियों का कलसी लिये हुए प्रवेश पहली-क्यो बिगड रही हो कामना ? दूसरी-किस पर क्रोध है कामना ? तीसरी-कितनी देर से यहाँ हो कामना ? कामना-(स्वगत) क्यो उत्तर दूं ? सिर खाने के लिए यहां भी सब पहुंची ! [मुंह फिरा लेती है और बोलती नहीं] पहली- क्यो कामना, क्या स्वस्थ नही हो? दूसरी-आह ! वेचारी कुम्हला गयी है ! तीसरी-धूप मे क्यो देर से बैठी है। - कामना-मै नही चाहती कि तुम लोग मुझे तंग करो। मैं अभी यही ठहरूंगी। दूसरी-प्यारी कामना, तू क्यो नही घर चलती ? कामना: ३५७