पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३८२

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लोला-क्यों, क्या ऐसा नहीं हो सकता ? सन्तोष-अभी तक तो नहीं सुना; क्या किसी पुरानी कहानी में तुमने ऐसा सुना है ? लीला-परन्तु कोई आया भी तो नही था। सन्तोष-यह तो ठीक नही है । सुना है, उसका नाम विलास है । लीला-ठीक तो नहीं है; पर होगा यही । सन्तोष-यदि विरोध हुआ, तो तुम क्या करोगी? लीला--मेरी सखी है । आज तक तो इस द्वीप में विरोध कभी नही हुआ ! सन्तोष-तो मैं विचार करूँगा। तुम्हारे पथ पर मैं चल सकूँगा ? लोला-(आश्चर्य से) क्या इसमें भी सन्देह है ? सन्तोष-हाँ लीला। लीला-नही-नही, ऐसा न कहो- [दोनों जाते हैं दृश्या न्त र तृतीय दृश्य [कुञ्जवन में कामना के साथ बैठा हुआ विलास] कामना-प्रिय, अब तो तुम हम लोगों की बातें अच्छी तरह समझने लगे । जो लोग मिलने आते है, उनसे बातें भी कर लेते हो। विलास- हाँ, अब तो कोई बाधा नही होती प्रिये ! तुम लोग कुछ गाती नही हो क्या ? कामना-गाती क्यों नहीं है, पर तुम्हें हमारे गाने अच्छे लगेगे ? विलास-क्यों नही, सुनूं तो। [कामना गाती है और विलास बाँसुरी बजाता है] सघन वन-वल्लरियों के नीचे उषा और सन्ध्या-किरनों ने तार बीन के खीचे हरे हुए वे गान जिन्हें मैंने आँसू से सींचे स्फुट हो उठी मूक कविता फिर कितनों ने हग मीचे स्मृति-सागर में पलक-चुलुक से बनता नही उलीचे मानस-तरी भरी करुना-जल होती ऊपर-नीचे विलास-कामना ! कामना ! तुम लोगों का ऐसा मधुर गान है ! मैंने तो ऐसा गान कभी नहीं सुना ! ३६२: प्रसाद वाङ्मय