पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३८३

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" कामना-(आश्चर्य से) क्या ऐसा गान कही नही होता ? विलास-इस लोक मे तो नही। कामना-तब तो बडी अच्छी बात हुई । विलास-क्या? कामना-मैं नित्य सुनाया करूंगी। विलास-क्यो प्रिये, तुम्हारे देश के लोग मुझसे अप्रसन्न तो नही है ? क्या-- कामना-इसमे अप्रसन्न होने की तो कोई बात नही है । यह तो इस द्वीप का नियम है कि प्रत्येक स्त्री पुरुष स्वतत्रता से जीवन-भर के लिए अपना साथी चुन ले विलास --क्या तुम्हे किसी का डर नही है ? कामना-(अल्हड़पन से) डर ! डर क्या है ? विलास -क्या तुम्हारे ऊपर किसी की आज्ञा नही है ? कामना--हां है, नियमो की। वह तुम्हारे लिए टूट नही रहा है । और, इस इस समय तो मैं ही इस द्वीप-भर की उपासना का नेतृत्व कर रही हूँ। मेरे लिए कुछ विशेष म्वतन्त्रता है। विलास [--क्या ऐसा सदैव रहेगा ? कामना-(चौककर) क्या मेरे जीवन-भर ? नही ऐसा तो नही है, और न हो सकता है। विलास-(गम्भीरता से) क्यो नही हो सकता? मेरे देश मे तो बराबर होता है। -(प्रसन्न घबराहट से) तो क्या मेरे लिये यहाँ भी वह सम्भव है ? विलास-उद्योग करने से होगा। कामना--चलो, उम शिलाखण्ड पर अच्छी छाया है, वही बैठे। [हाथ पकड़ कर उठाती है, दोनों वहीं जाकर बैठते है] विलास--कामना, तुम लोगो की कोई कहानी है ? कामना-है क्यो नही ! विलास--कुछ सुनाओ। इस द्वीप की कथा मैं सुनना चाहता हूँ। कामना--(आकाश की ओर दिखाकर) हम लोग बडी दूर से आये है । जब विलोडित जलराशि स्थिर होने पर यह द्वीप ऊपर आया, उसी समय हम लोग शीतल तारिकाओ की किरणो की डोरी के सहारे नीचे उतारे गये। इस द्वीप में अब तक तारा की ही सन्ताने बसती है । कामना-- - १. अवलोक्य. दीघनिकाय अग्गजसुत, इत्यादि । कामना : ३६३