पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३८४

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विलास-क्यों यह जाति उतारी गयो ? कामना-वहाँ चुपचाप बैठने से यह सन्तुष्ट नहीं थी। पिता ने खेल के लिये यहां भेज दिया। इन तारा की सन्तानों का खेल एक बड़े छिद्र से पिता देखा करते हैं। विलास-कौन सा छिद्र ? ' कामना-वही, जिससे दिन हो जाता है। पिता का असीम प्रकाश उससे दिखायी पड़ता है, क्योंकि वह केवल आलोक हैं ! वही रात को झंझरीदार परदा खीच लेता हैं, तब कहीं-कहीं से तारे चमकते हैं। यह सब उसी लोक का प्रकाश हैं। विलास-अच्छा, तो वहां जाते कैसे हैं ? कामना --पिता की आज्ञा से कभी छोटी, कभी बड़ी एक राह खुलती है, और किसी दिन विलकुल नही, उसे चन्द्रमा कहते हैं । अपने शीतल पथ से थकी हुई तारा की संतान अपने खेल समाप्त कर उसी से चली जाती है। विलास--(आश्चर्य से) भला तारों की राह से क्यों भेजे जाते है ? कामना-यह खिलवाड़ी और मचलने वाली सन्तान थका देने के लिये भेजी जाती है। हमारे अत्यन्त प्राचीन आदेशों मे तो यही मिलता है, ऐसा ही हम लोग जानते है। [दूर एक बड़ा सुरीला पक्षी बोलता है, कामना घुटने टेक कर सिर झुका लेती और चुपचाप उसका शब्द सुनती है] विलास -कामना ! यह क्या कर रही हो ? कामना -(उठकर) पिता का संदेश सुन रही थी। मैं उपासना-गृह में जाती हूँ। क्योंकि कोई नवीन घटना होने वाली है । तुम चाहे ठहरकर आना। (चली जाती है) विलास-आश्चर्य ! कैसी प्रकृति से मिली हुई यह जाति है ! महत्त्व और आकांक्षा का अभाव और संघर्ष का लेश भी नहीं है। जैसे शैल-निवासिनी सरिता पथ के विषम ढोकों को, विघ्न-बाधाओं को भी अपने सम और सरल प्रवाह तथा तरल गति मे ढंकती हुई वहती रहती है, उसी प्रकार यह जाति, जीवन की वक्र रेखाओं को सीधी करती हुई, अस्तित्व का उपभोग हंसती हुई कर लेती हैं। परन्तु ऐसे-(चुप होकर सोचने लगता है) उहूँ, करना होगा। ऐसी सीधी जाति पर भी यदि शासन न किया, तो पुरुषार्थ ही क्या ? इनमें प्रभाव फैलाकर अपने व्यक्तिगत महत्ता के प्रलोभन वाले विचारों का प्रचार करना होगा। जान पड़ता है कि किसी गुप्त संकेत पर ये लोग प्राचीन प्रथा के अनुसार, केवल उपासना के लिए किसी के नेतृत्व का अनुसरण करते हैं । सम्भवतः जब तक लोग उसकी कोई अयोग्यता न देख लेगे, तब तक उसी को नेता मानते रहेगे। भाग्य से आज-कल कामना ही है। ३६४: प्रसाद वाङ्मय