पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३९८

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सव-बड़ा विचित्र खेल है। विलास-खेल ही नहीं, यह व्यायाम भी है। कामना-परन्तु विलास, देखो यह हरी-हरी घास रक्त से लाल रंगी जाकर भयानक हो उठी है, यहाँ का पवन भाराक्रान्त होकर दबे-पाँव चलने लगा है। विलास-अभी तुमको अभ्यास नहीं है रानी ! चलो विनोद, सबको लिवाकर तुम चलो। [विलास और कामना को छोड़कर सब जाते हैं] कामना-विलास! विलास-रानी! कामना-तुमने ब्याह नहीं किया। विलास-किससे? कामना-मुझी से, उपासना-गृह की प्रथा पूरी नहीं हुई। विलास-परन्तु और तो कुछ अन्नर नही है। मेरा हृदय तो तुमसे अभिन्न ही है । मैं तुम्हारा हो चुका हूँ। कामना-परन्तु-(सिर झुका लेती है) विलास-कहो कामना ! (ठड्डी पकड़ कर उठाता है) कामना-मैं अपनी नही रह गयी हूं प्रिय विलास ! क्या कहूँ । विलास-तुम मेरी हो। परन्तु सुनो, यदि इस विदेशी युवक से ब्याह करके कहीं तुम सुखी न होओ, या कभी मुझी को यहां से चला जाना पड़े ? कामना-(आश्चर्य और क्षोभ से) नहीं विलास, ऐसा न कहो। विलास-परन्तु अब तो तुम इस द्वीप की रानी हो। रानी को क्या ब्याह करके किसी बन्धन में पड़ना चाहिये । कामना-तब तुमने मुझे रानी क्यों बनाया ? विलास-रानी, तुमको इसलिए रानी बनाया कि तुम नियमों का प्रवर्तन करो। इस नियम-पूर्ण संसार में अनियन्त्रित्त जीवन व्यतीत करना क्या मूर्खता नहीं है नियम अवश्य है-ऐसे नीले नभ में अनन्त उल्का-पिण्ड, उनका क्रम से उदय और अस्त होना, दिन के बाद नीरव निशीथ, पक्ष-पक्ष पर ज्योतिष्मती राका और कुहू, ऋतुओं का चक्र, और निस्सन्देह शंशव के बाद उद्दाम यौवन, तब क्षोभ से भरी हुई जरा -ये सब क्या नियम नही हैं ? कामना-यदि ये नियम हैं, तो मैं कह सकती हूँ कि अच्छे नियम नहीं हैं। ये नियम न होकर नियति हो जाते हैं, असफलता की ग्लानि उत्पन्न करते हैं । विलास-कामना ! उदार प्रकृति बल, सौंदर्य और स्फूर्ति के फुहारे छोड़ रही है। मनुष्यता यही है कि सहज-लब्ध विलासों का, अपने सुखों का सञ्चय और उनका ? ३७८ःप्रसाद वाङ्मय