पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/४०७

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सब-हम प्रजा हैं। विलास-देखो, ईश्वर असंख्य प्राणियों का, सारी सृष्टि का जिस प्रकार अधिपति है, उसी प्रकार तुम अपने कल्याण के लिये, अपनी सुव्यवस्था के लिये, न्याय और दण्ड के लिये इनको अपना अधिपति मानते हो। जिस प्रकार एक वन्य पशु दूसरे को सताकर उसे खा जाता है; और उसे दण्ड देने के लिए मृगया के रूप मे ईश्वर हम लोगो को आज्ञा देता है, उसी प्रकार हमारी इस जाति को एक-दूसरे के अपराधियों को दण्ड देने के लिये रानी की आवश्यक्ता हुई। और वह हुई -ईश्वर की प्रतिनिधि । अब सब लोग उसकी आज्ञा और नियमो का पालन करे; क्योंकि उसने तुम्हारे कष्टो को मिटाने के लिये पवित्र कुमारी होने का कष्ट उठाया है। उसके संकल्प हमारे कल्याण के लिये होगे। विनोद-पथार्थ है । (तलवार सिर से लगाता है) सव-हम अनुगत है । हमारी रक्षा करो। कामना-तुम सव सुखी होगे। मेरे दो हाथ है, एक न्याय करेगा, दूसरा दण्ड देगा। दण्ड के लिए सेनापति नियुक्त है, परन्तु न्याय मे महायता के लिए एक मन्त्री की-परामभदाता की आवश्यकता है, जिससे मैं सत्य और न्याय के बल से शासन कर सकूँ। तुम लोगो मे से कौन इस पद को ग्रहण करना चाहता है ? [सब परस्पर मुंह देखते है] कामना-मै तो विलास को इस पद के उपयुक्त समझती हूँ, क्योकि इन्ही की कृपा और परामर्शो से हम लोगो ने बहुत उन्नति कर ली है। लीला -मेरी भी यही सम्मति है। सब लोग-अवश्य । [कामना एक स्वर्णपट्ट विलास को पहनाती है, एक ओर विलास दूसरी ओर विनोद चौकियों पर बैठते हैं, धूनी जलती है। विलास- अपराधियो को बुलाया जाय । विनोद-(संनिकों से)--जाओ, उन्हे ले आओ ! [दो सैनिक एक-एक को बाँधे हुए ले आते है] कामना-क्यो तुम लोगो ने शान्तिदेव की हत्या की है ? विलास-और तुम अपना अपराध स्वीकर करते हो कि नही ? अपराधी-१-हत्या किसे कहते है, यह मै नही जानता। परन्तु जो वस्तु मेरे पास नही थी, उसी को लेने के लिए हम लोगो मे शान्तिदेव पर तीरो से वार किया। अपराधी-२-और इसीलिये कि उसके पास का सोना हम लोगों को मिल जाय। कामना: ३८७