पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/४१४

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सब-रानी की जय हो। कामना- तुम लोगों का कल्याण हो। विलास-रानी, तुम्हारी प्रजा तुम्हें आशीर्वाद देती है। विनोद-उसके लिए वैभव और सुख का आयोजन होना चाहिये । कामना--लालसा सोने की भूमि जानती है। वह तुम लोगों को बतायेगी। क्या उसे पाने के लिए तुम लोग प्रस्तुत हो ? सब-हम सब प्रस्तुत है। लालसा-उसके लिए बड़ा कष्ट उठाना पड़ेगा। सब-हम सब उठायेगे। लालसा-अच्छा तो मैं बताती हूँ। विनोद-और, इस प्रसन्नता मे मैं पहले से आप लोगों को एक वनभोज के लिए आमन्त्रित करता हूँ। लीला - परन्तु लालसा की एक प्रार्थना है । सब-अवश्य सुननी चाहिये। लालसा-शांतिदेव की हत्या का प्रतिशोध । [सब एक दूसरे का मुंह देखते हैं, लालसा विलास की ओर आशा से देखती है] विलास-अवश्य, उन हत्यारे बन्दियों को बुलाओ। [चार सैनिक जाते हैं] कामना-हां, तो तुम लोगों को उस भूमि पर अधिकार करना होगा। डरोगे तो नही? वह भूमि नदी के उस पार है । एक-जिधर हम लोग आज तक नही गये ? विनोद-इसी कायरता के बल पर स्वर्ण का स्वप्न देखते हो ? सब-नही, नही सेनापति, अपने यह अनुचित कहा । हम सब वीर हैं । विनोद-यदि वीर हो, तो चलो-वीरभोग्या तो वसुन्धरा होती ही है । उस पर जो सबल पदाघात करता है, उसे वह हृदय खोल कर सोना देती है । कामना-लालसा को धन्यवाद देना चाहिये । [बन्दी हत्यारों के साथ सैनिकों का प्रवेश लालसा-यही है, मेरे शान्तिदेव का हत्यारा ! कामना-तुम लोगों ने अपराध स्वीकार किया है ? विवेक-(प्रवेश करके) मैंने तो आज बहुत दिनों पर यह नपी सृष्टि देखी है। परन्तु जो देखता हूँ, वह अद्भुत है। इन्होंने एक हत्या की थी सोने के लिये परन्तु तुम लोग उदर-पोषण के लिए सामूहिक रूप से आज निरीह प्राणियों की ३९४: प्रसाद वाङ्मय