पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/४१६

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? [सब स्त्री-पुरुष एकत्र बैठते हैं। मद्य-मांस का भोज । उन्मत्त होकर सब का एक विकट नृत्य] विनोद-मेरा एक प्रस्ताव है। सब-कहिये। विनोद-यदि रानी की आज्ञा हो । कामना-हाँ, हाँ, कहो। विनोद-ऐमी उपकारिणी लालसा के कष्टो का ध्यान कर सब लोगो को चाहिए कि उनसे ब्याह कर लेने की प्रार्थना की जाय । कृतज्ञता प्रकाश करने का यह अच्छा अवसर है। कामना-परन्तु- विलास-नही रानी, उमका जीतन अकेला है, और अकेली पवित्रना केवल आपके लिये- कामना-हां, अच्छी बात है, परन्तु क्सिके माथ एक स्त्री-नाम तो तालमा को ही बताना पडेगा। लालसा--गे तो नहीं जानती। (लज्जित होती है) लीला-तो म चाहती हैं कि हम लोगो के परम उपगारी विलास जी ही इस प्रार्थना को स्वीकार करे ! यह जोडी नडी अच्छी होगी। सब--(एक स्वर से) बहुत ठीक है । [विनोद लालसा का और लीला विलास का हाथ पकड़कर मिला देते है, कामना त्रस्त हो उस यूंथ से अलग होकर खड़ी हो जाती है और आश्चर्य तथा करुणा से देखती है, स्त्रियाँ घेर कर नाचती हुई गाती है] छिपाओगी कैसे--आँखे कहेगी। बिथुरी अलक पक्ड लेती है, प्रेम की आंख चुराओगी कैसे- आँखे कहेगी राग-रक्त कपोल है लेते ही नाम बताओगी कैसे- होते आँखे कहेगी यव निका ३९६: प्रसाद वाङ्मय