पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/४३०

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पिता कुलांगार | यह धृष्टता मुझसे सही न जायगी । लड़का-तो लो, मै जाता हूँ। युद्ध मे सैनिक बनकर आनन्द करूँगा। तुम दोनो के नित्य के झगडे से तो छुट्टी मिल जायगे । (उठता है) माता-यह बाप है कि हत्यारा ? एक प्याला मदिरा नही दे देता। लडके को मरने के लिये युद्ध भेजना चाहता है। जान पडता है, इसने दूसरे बाल-बच्चे स्त्री आदि बना लिये है, अब हम लोगो की आवश्यकता नही रही। एक को तो युद्ध मे भेज दिया, दूसरे वो भी- पिता-वह तेरे लिए स्वर्ण लाने गया है। पिशाचिनी । तू माँ है ? तुझे आभूषणो की इतनी आवश्यक्ता लडका -च्छा, तो फिर जाता हूँ (उठता और गिर पड़ता है, फिर माँ से कहता है) तू ही दे दे, इस खेतिहर गॅवार को जाने दे। [पिता क्रोध से चला जाता है] माता -अच्छा लो, पर फिर न मॉगना । (देती है) लड़का-(लेटा हुआ) नही, आँख खुलने तक नही। अभी एक नीद सो लेने दो। (लेटता है) माता -कैसा मीधा लडका है । (हँसती है) दृश्या न्त र ? षष्ठ दृश्य ? [नवीन नगर की एक गली मे नागरिको का प्रवेश पहला नागरिक सब ठीक है | कामना ने यदि उन विचार-प्रार्थियो के कहने से कुछ भी इस नगर पर अत्याचार किया तो हम लोग उसका प्रतिकार करेगे । दूसरा नागरिक-वह क्या पहला नागरिक --विलास को यहां का राजा बनावेगे और कामना को बन्दी। दूसरा नागरिक यहाँ तक ? पहला नागरिक-बिना राजा के हम लोगो का काम नहीं चलेगा। यह तुच्छ स्त्री, कोमल हृदय वी पुतली शासन का भेद क्या जानेगी। -क्या और लोग भी इसके लिए प्रस्तुत हे ? पहला-सब ठीक है, अवसर की प्रतीक्षा है। चलो, आज वम्भदेव के यहाँ उत्सव है । तुम चलोगे कि नही ? दूसरा -हाँ, हां चलूंगा । (दोनों जाते है) [करुणा का सन्तोष को लिये हुये प्रवेश] दूसरा नागरिक ४१० प्रसाद वाङ्मय