पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/४३३

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नागरिक नगर का दुर्नाम होगा, ऐसा नहीं हो सकता। तुम्हें चिकित्सा कगनी होगी। मैं शस्त्र ले आता हूँ। (जाता है) [प्रमदा का सहेलियों के साथ नाचती हुई आना, दूसरी ओर से दम्भ का अपने दल के साथ प्रवेश] दम्भ-क्यों दुर्वृत्त ! क्रूर ! तुम लोग अभी उत्सव में नहीं मिले। क्रूर-कुछ कर्तव्य है आचार्य ! यह पीडित है, इसकी चिकित्सा- दम्भ-(सन्तोष को देखकर) छि छिः । पवित्र देवकार्य के समय तुम अस्पृश्य को छुओगे ? (सन्तोष से) जा रे, भाग ! दुर्वत्त-(धीरे से) यह शान्तिदेव की वहन है। उसके पास अपार धन था। इसे न्यायालय में ले चलूंगा और कृर को भी इसकी चिकित्सा से कुछ मिलेगा। हम दोनों का लाभ है। दम्भ- यह मब कल होगा। (नागरिक से) यह तुम्हारा घर है न ? नागरिक हो। दम्भ-आज इमे तुम अपने यहाँ रखो। कल इसकी चिपित्मा होगी। और इस सुन्दरी को देवदामियो के दल मे सम्मिलित कर लो। इसके लिए न्यायालय का प्रबन्ध कल किया जायगा। आज पवित्र दिन है, केवल उत्सव होना चाहिये। [नागरिक सन्तोष को पकड़ता है, और प्रमदा एक मद्यप के साथ करुणा को खींचती है, विवेक दौड़कर आता है ] विवेक -कौन ग पिशाच-लीला का नायक है ? [सब सहम जाते हैं, विवेक सबसे छुड़ाकर दोनों को लेकर हटता है] दम्भ-तू कौन इस उत्सव में धूमकेतु-सा आ गया ? छोड़कर चला जा, नही तो तुझे पृथ्वी के नीचे गडवा दूंगा। विवेक-मै चला जाऊँगा। फल के समान आया हूँ, सुगन्ध के सदृश जाऊंगा। तू बच, देख उधर । (सब उसे पकड़ने को चञ्चल होते है, विवेक दोनों को लिये हटता है । भूकम्प से नगर का वह भाग उलट-पलट हो जाता है) दृश्या न्त र प्रमग सप्तम दृश्य [आक्रांत देश का एक गाँव, एक बालिका और विवेक] वालिका - आज तक तो हमारे ऊपर अत्याचार होता रहा है; परन्तु कोई इतनी मित्रता नही दिखलामे आया। तू आज छल करने आया है। कामना : ४१३