पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/४८३

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1 शील-शिष्टाचार का पालन करें-आत्मसमर्पण, सहानुभूति, सत्पथ का अवलम्बन करें- तो दुर्दिन का साहस नहीं कि उस कुटुम्ब की ओर आँख उठाकर देखे। इस कठोर समय में भगवान की स्निग्ध करुणा का शीतल ध्यान कर । रामा-महादेवी ! परन्तु आपकी क्या दशा होगी ! देवकी-मेरी दशा? मेरी लाज का बोझ उसी पर है जिसने वचन दिया है, जिस विपद्-भंजन की असीम दया-अपना स्निग्ध अञ्चल-सब दुखियों के आँसू पोंछने के लिए सदैव हाथ मे लिए रहती है। रामा-परन्तु उसने पिशाच का प्रतिनिधित्व ग्रहण किया है, और... देवकी -न घबरा रामा ! एक पिशाच नही, नरक के असंख्य दुत प्रेतों और क्रूर पिशाचों का त्रास --उनकी ज्वाला-दयामय की कृपा-दृष्टि के एक बिंदु मे शात होती है। (नेपथ्य से गान) पालना बने प्रलय की लहरें? शीतल हो ज्वाला की आँधी, करुणा के धन छहरें। पण दुलार करे, पल भर भी-विपदा पास न ठहरे। प्रभु का हो विश्वास सत्य, तो सुख का केतन फहरे । [भटार्क आदि के साथ अनंतदेवी का प्रवेश अनंतदेवी--परंतु व्यंग-विष की ज्वाला 'क्तधारा से भी नहीं बुझती देवकी ! तुम मरने के लिये प्रस्तुत हो जाओ। देवकी- क्या तुम मेरी हत्या करोगी? प्रपंचबुद्धि-हाँ ! मद्धर्म का विरोधी, हिमालय की निर्जन ऊंची चोटी तथा अगाध समुद्र के अंतस्तल में भी नही बचो पावेगा; और उस महाबलिदान का आरंभ होगा- तुम्ही से । शर्व ! आगे बढ़ो- रामा-(सम्मुख आकर) एक शर्व नही, तुम्हारे-जैरे. सैकड़ों पिशाच भी यदि जुट कर आवे तो भी आज महादेवी का अंगस्पर्श --कोई न कर सकेगा। (छुरी निकालती है) शनाग-मैं तेरा स्वामी हूं रामा ! क्या तू मेरी हत्या करेगी? रामा-ओह ! बडी धर्मबुद्धि जगी है-पिशाच को, और यह महादेवी तेरी कौन है ? शनाग-फिर भी मैं तेरा... रामा-स्वामी ! नही-नही, तू मेरे स्वामा का नरकवासी प्रेत है। तेरी हत्या कैसी- -तू तो कभी का मर चुका है। । स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य : ४६३