पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५००

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? सेना भी उसमें सम्मिलित होगी और मैं ही उसका परिचालन करूंगा। वही इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिलेगा-और यह लो प्रमाण-पत्र । (पत्र लिख कर देता है) पुरगुप्त-ठहरो! अनंतदेवी--चुप रहो! दूत-तो यह उपहार भी साम्राज्ञी के लिए प्रस्तुत है । (रत्नमंजूषा देता है) भटार्क-और उत्तरापथ के समस्त धर्मसंघो के लिए क्या किया है ? दूत-आर्य महाश्रमण के पास मै हो आया हूँ। सद्धर्म के समस्त अनुयायी और संघ, स्कदगुप्त के विरुद्ध है। याज्ञिक क्रियाओ की प्रचुरता से उनका हृदय धर्मनाश के भय से घबरा उठा है । वे सब विद्रोह करने के लिए उत्सुक है । भटार्क -अच्छा, जाओ। नगरहार के गिरिव्रज का युद्ध इसका निबटारा करेगा । हूणराज मे कहना कि सावधान रहे-शीघ्र वही मिलगा। [दूत प्रणाम करके जाता है] पुरगुप्त-यह क्या हो रहा है ? अनंतदेवी-तुम्हारे सिंहामन पर बैठने की प्रस्तावना है सैनिक-(प्रवेश करके) महादेवी की जय हो । भटार्क -क्या है सैनिक-कुसुमपुर की सेना जालधर मे भी आगे वढ चुकी है। माम्राज्य के स्कंधावार में शीघ्र ही उसके पहुँच जाने की ममावना है । पुरगुप्त-विजया ! बहुत विलब हुआ। एक पात्र" [अनंतदेवी संकेत करती है|विजया उसे पिलाती है] भटार्क-मेरे अश्वों की व्यवस्था ठीक है न ' मै उसके पहले पहुँचूंगा। सैनिक-परतु महाबलाधिकृत । भटार्क-कहो ! सैनिक-यह राष्ट्र का आपत्तिकाल है, युद्ध की आयोजनाओ के बदले हम कुसुमपुर मे आपानकों का ममागेह देख रहे है। राजधानी विलासिता का केंद्र बन रही है। यहाँ के मनुष्यो के लिये विनाम के उपकरण विखरे रहने पर भी-अपर्याप्त हैं ! नये-नये साधन और नवीन कल्पनाओ से भी इस विलासिता-राक्षसी का पेट नही भर रहा है भला मगध के निलामी सैनिक क्या करेंगे? भटार्क-अबोध ! जो विलामी न होगा वह भी क्या वीर हो सकता है ? जिस जाति मे जीवन न होगा वह विलास क्या करेगी ? जाग्रत राष्ट्र मे ही विलास और कलाओं का आदर होता है। वीर एक कान से तलवारो की और दूसरे से नूपुरों की झनकार सुनते है । विजया-बान नो यही है । ४८०: प्रसाद वाङ्मय