पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५०१

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सैनिक-आप महाबलाधिकृत है-इमलिए मैं कुछ न कहूँगा। भटार्क-नही तो? सैनिक -यदि दूसरा कोई ऐसा कहता, तो मै यही उसमे कहता कि तुम देश के शत्रु हो ! भटार्क -(क्रोध से) है. सैनिक-हाँ ! यवनो से उधार ली हुई सभ्यता नाम की विलामिता के पीछे आर्य-जाति उसी तरह पडी है, जैसे कुलबध् को छोडकर कोई नागरिक वेश्या के चरणो मे । देश पर बर्बर हूणो की वढाई और तिमपर भी यह निर्लज्ज आमोद ! जातीय जीवन के निर्वाणोन्मुख प्रदीप का-यह दृश्य-आह । जिस मगध की सेना सदैव नासीर मे रहती थी - आर्य चद्रगुप्त की वही विजयिनी सेना सबके पीछे निमत्रण पाने पर साम्राज्य-सेना मे जाय | महाबलाधिकृत | मरी तो इछा होती है कि मै आत्महत्या कर लूं। मैं उस सेना का नायक है, जिस पर गरुडध्वज की रक्षा का भार रहता था। आर्य ममुद्रगुप्त द्वारा प्रतिष्ठिन - उमी सेना का ऐसा अपमान ! भटाक (अपने क्रोध का मनोभाव दबाकर) अन्छा, तुम यही मगध पी रक्षा करना, मैं जाता हूँ। -अच्छा तो यह खड्ग लीजिये, में आज से मगध की सेना का नायक नही । (खड्ग रख देता है) पुरगुप्त-(मद्यप की-सी चेष्टा करते) यह अच्छा रिया- आनो मित्र- हम-तुम कादब पियें । जाने दो इन्हे-लडने दो । अनंतदेवी-(भटार्क को संकेत करती हुई ले जाती हे ओर विज कहती है) विजया | युवराज वा मन बहलाओ। [सैनिक तिरस्कार से देखते हुए जाता है/भटार्क और अनंतदेवी एक ओर विजया और पुरगुप्त दूसरी ओर जाते हे] दृश्या न्त र सैनिक -हूँ- चतुर्थ दृश्य ? जब [अवंती के उपवन में जयमाला और देवसेना] जयमाला-तू उदास है कि प्रसन्न, कुछ समझ मे नही जात' त् गीत गाती है तब तेरे भीतर की रागिनी रोती है और जब हँसती है तब जैसे विषाद की प्रस्तावना होती है। पहली सखी - सम्राट युद्ध-यात्रा मे गये है और.... ३१ स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य ४८१