पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५०५

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पंचम दृश्य - [गांधार की घाटी-रणक्षेत्र] [तुरही बजती है, स्कंदगुप्त और बंधुवर्मा के साथ सैनिकों का प्रवेश] बंधुवर्मा-वीरो ! तुम्हारी विश्व विजयिनी वीर-गाथा सुर-सुन्दरियो की वीणा के साथ मंद ध्वनि से नदन मे गूंज उठेगी। असीम साहमी आर्य सैनिक | तुम्हारे शस्त्र ने बर्बर हूणो को बता दिया है कि रणविद्या केवल नृशसता नहीं है। जिनके आतक से आज विश्वविख्यात रूम-साम्राज्य पादाकात है, उन्हे तुम्हारा लोहा मानना होगा और तुम्हारे पैरो के नीचे दबे हुए कठ से उन्हे स्वीकार करना होगा कि भारतीय दुर्जेय वीर है। समझ लो आज के युद्ध में प्रत्यावर्तन नही है। जिसे लौटना हो, अभी से लौट जाय । सैनिक--आर्य-मैनिको का अपमान करने का अधिार--महाबलाधिकृत को भी नहीं है । हम सब प्राण देने आये हे----खेलने नही । सदगप्त--साधु ! तुम यथार्थ ही जननी जन्मभूमि की सतान हो । सैनिक-राजाधिराज श्री स्कदगुप्त विक्रमादित्य की जय ! चर -(प्रवेश करके) परम भट्टारक की जय हो ! स्कंदगुप्त [--क्या समाचार है ? चर--देव । हूण शीघ्र हीनदी पार होकर--आक्रमण की प्रतीक्षा कर रहे है, यदि आक्रमण न हुआ, तो वे स्वय जात्रमण करेंगे। बंधुवर्मा--और कुभा के रणक्षेत्र का क्या समाचार है ? चर-मगध की सेना पर विश्वास करने के लिए मे न कहूँगा। भटार्क की दृष्टि मे पिशाच की मत्रणा चल रही है, खिागल के दूत भी रहे है। चक्रपालित उस कूट-चक्र को तोड सकेगे कि नही इसमे मदेह है । स्कंदगुप्त-बधुवर्मा | तुम कुभा के रण-क्षेत्र की ओर जाओ, मै यहां देख लूंगा। बंधुवर्मा--राजाधिराज ! मगध की सेना पर अधिकार रखना मेरे सामर्थ्य के बाहर होगा, और मालव की सेना-आज नासीर मे है। आज इस नदी की तीक्ष्ण धारा को लाल करके बहा देने की मेरी प्रतिज्ञा है। आज मालन का एक भी सैनिक नासीर-सेना न हटेगा। स्कंदगुप्त--बधु ! यह यश मुझसे मत कीन लो। बंधुवर्मा-परंतु सबके प्राण देने के स्थान भिन्न है। यहाँ मालव की सेना मरेगी, दूसरे को यहाँ मर कर अधिकार जमाने का अधिकार नही। और बधुवर्मा 1 स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य : ४८५