पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५०८

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चक्रपालित-इसका समय नही है सम्राट्, उठिये सेना आ रही है, इस समय यह समाचार नही प्रचारित करना है। स्कन्दगुप्त-(उठते हुए) ठीक कहा ! (भटार्क के साथ सेना का प्रवेश) भटार्क । देखो, कुभा के उस बध से सावधान रहना। आक्रमण मे यदि असफलता हो, और शत्रु की दूसरी सेना कुभा को पार करना चाहे तो उसे काट देना। देखो भटार्क । तुम्हारे विश्वास का यही प्रमाण है। भटार्क--जैसी आपकी आज्ञा । (कुछ सैनिकों के साथ जाता है) स्कन्दगुप्त--चक | दुर्ग-रक्षक सैनिको को लेकर तुम प्रतीक्षा करना । इमी छोटी-मी सेना से आक्रमण करेंगे। तुम मावधान । (नेपथ्य में रण-वाय) देखो--17 ण । हे । उन्हे वही रोक्ना होगा। चापालित--जैमी आज्ञा । (जाता है) स्कन्दगुप्त--वीर मगध-सैनिको । आज स्कदगुप्त तुम्हारी परिचालना कर रहा है, यह ध्यान रहे, गाडव्यज ना मान रहे, भले ही प्राण जाय । मग-सेना- गजाधिराज श्री स्कदगुप्त की जय । [सेना बढ़ती हे ऊपर से अस्त्र-वर्षा होती है|घोर युद्ध के बाद हूण भागते है।साम्राज्य-सेना जयनाद करते हुए शिखर पर अधिकार करती है] --(ऊपर से देखता हुआ) सम्राट् | आश्चर्य है, भागी हुई हूण-सेना कुभा के उम पार उतर जाना चाहती है स्कन्दगुप्त 1--क्या कहा? नायक--बुल मगध-सेना भी वहाँ है, परतु वह तो जैसे उनका स्वागत कर रही है। सन्गन--विश्वामघात--प्रतारणा | नीच भटार्क ! नायक-- फिर क्या आज्ञा है? स्कन्दगुप्त-दुर्ग की रक्षा होनी चाहिये । उम पार की हूण-सेना यदि आ गई, ता 17 भट क उन्हें मार्ग बतावेगा। वीरो, शीघ्र--उन्हें उसी पार रोकना होगा, अभी भा पार होन की सम्भावना है। (नायक तुरही बजाता है सैनिक इकट्ठे होते है) स्कन्दगुत--(घबराहट से देखते हुए) शीघ्रता करो। नाय-क्या? स्कन्दगुप्त--नीच मटार्क ने बध तोड दिया है, कुभा मे जल बडे वेग से बढ रहा है। चनो शीघ्र-- (सब उतरना चाहते है/कुभा में अकस्मात् जल बढ़ जाता है।सब बहते हुए दिखाई देते है]] [सधन होते अंधकार में पटाक्षेप नायक-- ४८८. प्रमाद वाङ्मय