पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५४९

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प्रथम अंक प्रथम दृश्य [तक्षशिला के गुरुकुल का प्रांगण/चाणक्य और सिंहरण] चाणक्य-सौम्य, कुलपति ने मुझे गृहस्थ-जीवन में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी। केवल तुम्हीं लोगों को अर्थशास्त्र पढ़ाने के लिए ठहरा था, क्योंकि इस वर्ष के भावी स्नातकों को अर्थशास्त्र का पाठ पढ़ाकर मुझ अकिंचन को गुरुदक्षिणा चुका देनी थी। सिंहरण-आर्य, मालवों को अर्थशास्त्र की उतनी आवश्यकता नही जितनी अस्त्रशास्त्र की । इसीलिए मैं पाठ में पिछड़ा रहा, क्षमाप्रार्थी हूँ। चाणक्य-अच्छा, अब तुम मालव जाकर क्या करोगे? सिंहरण-अभी तो मैं मालव नही जाता। मुझे तक्षशिला की राजनीति पर दृष्टि रखने की आज्ञा मिली है। चाणक्य-मुझे प्रसन्नता होती है कि तुम्हारा अर्थशास्त्र पढ़ना सफल होगा। क्या तुम जानते हो कि यवनों के दूत यहाँ क्यों आये हैं ? सिंहरण-मैं उसे जानने की चेष्टा कर रहा हूँ—आर्यावर्त का भविष्य लिखने के लिये कुचक्र और प्रतारणा की लेखनी और मसि प्रस्तुत हो रही है। उत्तरापथ के खंड-राज्य द्वेष से जर्जर है । शीघ्र भयानक विस्फोट होगा ! [सहसा आंभीक और अलका का प्रवेश] आंभीक-कैसा विस्फोट ? युवक, तुम कौन हो? सिंहरण-एक मालव । आंभीक-नहीं, विशेष परिचय की आवश्यकता है। सिंहरण-तक्षशिला गुरुकुल का एक छात्र । आंभीक-देखता हूँ कि तुम दुश्शील भी हो। सिंहरण-कदापि नहीं राजकुमार ! विनम्रता के साथ निर्भीक होना मालवों का वंशानुगत चरित्र है, और मुझे तो तक्षाला की शिक्षा का भी गर्व है। आंभीक-परन्तु तुम किसी विस्फोट की बातें-अभी कर रहे थे। और चाणक्य-क्या तुम्हारा भी इसमें कुछ हाथ है ? (चाणक्य को चुप देखकर क्रोध ३४ चन्द्रगुप्त : ५२९