पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

एक युवती-हम लोग तो निमन्त्रित नागरिक हैं देव ! इसका दायित्व तो निमन्त्रण देने वाले पर है। नन्द-वाह, यह अच्छा उलाहना रहा ! (अनुचर से) मूर्ख ! अभी और कुछ सुनवावेगा ? तू नहीं जानता कि मैं ब्रह्मास्त्र से अधिक इन सुन्दरियों के कुटिल कटाक्षों से डरता हूँ ! ले आ - शीघ्र ले आ-नागरिकों पर तो मैं राज्य करता हूँ, परन्तु मेरी मगध की नागरिकाओं-कुसुमपुर की काम-कामनियों का शासन-मेरे ऊपर है। श्रीमति, सबसे कह दो-नागरिक नन्द, कुसुमपुर के कमनीय कुसुमों से अपराध के लिए क्षमा मांगता है और आज के दिन यह तुम लोगों का कृतज्ञ सहचर- मात्र है। [अनुचर लोग प्रत्येक कुंज में मदिरा-कलश और चषक पहुंचाते हैं। राक्षस और सुवासिनी का प्रवेश, पीछे-पीछे कुछ नागरिक] राक्षस-सुवासिनी ! एक पात्र और. चलो इस कुंज मे- सुवासिनी-नहीं, अब मैं न संभल सकूँगी। राक्षस-फिर इन लोगों से कैसे पीछा छूटेगा? सुवासिनी-मेरी एक इच्छा है । एक नागरिक -क्या इच्छा है सुवासिनी, हम लोग अनुचर है। केवल एक सुन्दर अलाप की, एक कोमल मूर्छना की लालसा है। सुवासिनी-अच्छा तो अभिनय के साथ । सब-(उल्लास से)-सुन्दरियों की रानी सुवासिनी की जय ! सुवासिनी-परन्तु राक्षस को कच का अभिनय करना पड़ेगा। एक नागरिक -और तुम-देवयानी ! क्यों? यही न । राक्षस सचमुच राक्षस होगा, यदि इसमें आनाकानी करे-तो""चलो राक्षस ! दूसरा-नही मूर्ख ! आर्य राक्षस कह इतने बड़े कला-कुशल विद्वान् को किस प्रकार सम्बोधित करना चाहिये, तू इतना भी नहीं जानता। आर्य राक्षस ! इन नागरिकों की प्रार्थना से इस कष्ट को स्वीकार कीजिये ! [राक्षस उपयुक्त स्थान ग्रहण करता है।कुछ मूक अभिनय के बाद सुवासिनी का माव सहित गान] तुम कनक किरन के अन्तराल में लुक-छिप कर चलते हो क्यों ? नत मस्तक गर्व वहन करते यौवन के घन, रस कन ढरते हे लाज भरे सौन्दर्य ! बता दो-मौन बने रहते हो क्यों? अधरों के मधुर कगारों में कल-कल ध्वनि की गुंजारों में ? ५३४ : प्रसाद वाङ्मय