पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५५६

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हिलाकर धड़कन से अविनीत जगा मत सोया है सुकुमारे देखता है स्मृतियों का स्वप्न हृदय पर मत कर अत्याचार । समवेत कण्ठ से-'स्वर्गीय अमात्य वक्रनास के कुल की जय' नन्द-क्या कहा-वक्रनास का कुल ? नागरिक-हां देव, आर्य राक्षस उन्हीं के भ्रातृष्पुत्र हैं । नन्द-राक्षस ! आज से तुम मेरे अमात्यवर्ग में नियुक्त हुए । तुम तो कुसुमपुर के एक रत्न हो! [नन्द राक्षस को माला पहनाता है और शस्त्र देता है] सब-सम्राट् की जय हो ! अमात्य राक्षस की जय हो ! नन्द-और सुवासिनी-तुम मेरी अभिनयशाला की रानी ! [नत्यांगना सुवासिनी की जयकार करते सब जाते हैं] दृश्या न्त र तृतीय दृश्य . [कुसुमपुर में एक भग्न कुटीर] चाणक्य-(प्रवेश करके) झोपड़ी ही तो थी, पिताजी यही मुझे गोद मे लेकर राज-मन्दिर का सुख अनुभव करते थे। ब्राह्मण थे- ऋत और अमृत- जीविका से सन्तुष्ट थे, पर वे भी न रहे ! कहाँ गए, कोई नही जानता। मुझे भी कोई नही पहचानता । यही तो मगध का राष्ट्र है। प्रजा की खोज है किसे ? वृद्ध, दरिद्र ब्राह्मण कही ठोकरें खाता होगा या मर गया होगा ! [एक प्रतिवेशी का प्रवेश] प्रतिवेशी-(चाणक्य को देखकर) तुम कौन हो जी? इधर के घरों को बड़ी देर से क्या घूर रहे हो ? चाणक्य-ये घर है- जिन्हें पशु की खोह कहने में भी संकोच होता है ? यहाँ कोई स्वर्ण-रत्नो का ढेर नही, जो लुटने का भय हो?. प्रतिवेशी-युवक, तुम किसी को खोज रहे हो ? चाणक्य--हाँ खोज रहा हूँ-इसी झोपड़ा में रहने वाले वृद्ध ब्राह्मण चणक को । आजकल वे कहां हैं, बता सकते हो ? प्रतिवेशी-(सोच कर) ओहो, कई वरस हुए वह तो राजा की आज्ञा से निर्वामित कर दिया गया है। (हंसकर)-वह ब्राह्मण भी बड़ा ही था। उसने राजा नन्द के विरुद्ध प्रचार करना आरम्भ किया। सो भी क्यों-एक मन्त्री शकटार के लिए। उसने सुना कि राजा ने शकटार का बन्दीगृह में वध करवा डाला। ५३६ : प्रसाद वाङ्मय