पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५५७

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ब्राह्मण ने नगर मे इस अन्याय के विरुद्ध आतंक फैलाया। सबसे कहने लगा कि- "यह महापन का जारज पुत्र नन्द-महापद्म का हत्याकारी नन्द-मगध में राक्षसी राज्य कर रहा है, नागरिको सावधान !" चाणक्य - अच्छा तब क्या हुआ? प्रतिवेशी-वह पकड़ा गया। सो भी कब, जब एक दिन अहेर की यात्रा करते हुए नन्द के लिए राजपथ मे नागरिको ने मुक्तकण्ठ से अनादर के वाक्य कहे । नन्द ने ब्राह्मण को समझाया। यह भी कहा कि तेरा मित्र शकटार बन्दी है, मारा नहीं गया। पर वह बडा हठी था, उसने न माना, न-ही माना। नन्द ने भी चिढ़ कर उसका ब्रह्मस्व बौद्ध-विहार मे दे दिया और मगध से निर्वासित कर दिया। यही तो उसकी झोपडी है। (जाता है) चाणक्य-(उसे बुलाकर) अच्छा एक बात और बनाओ। प्रतिवेशी -क्या पूछने हो जी, तुम इतना जान लो कि नन्द को ब्राह्मणों से घोर शत्रुता है और वह बौद्ध-धर्मानुयायी हो गगा है। चाणक्य-होने दो, परन्तु यह तो बताओ- शाटार का कुटुम्ब कहां है ? प्रतिवेशी कैसे मनुष्य हो ? अर राज कोगनल में वे सब जल मरे। इतनी- सी बात के लिए मुझे लौटाया था छि । (नारा गता है) चाणक्य-हे भगवान् ! एक बात दया करके और बता दो- शकटार की कन्या सुवासिनी कहां है ? प्रतिवेशी-(जोर से हंसता है) युवक । वह बौद्ध-विहार मे चली गयी थी, परन्तु वहाँ भी न रह सकी। पहले तो अभिनय करतो फिरती थी, आजकल कहाँ है, नही जानता। (जाता है) चाणक्य-पिता का पता नही, झोपडी भी नही रही। सुवासिनी अभिनेत्री हो गयी-संभवतः पेट की ज्वाला से। एक साथ दो-दो कुटुम्बो का सर्वनाश और कुसुमपुर फूलो की सेज मे ऊँघ रहा है | क्या इसीलिए राष्ट्र की शीतल छाया का संगठन मनुष्य ने किया था मगध ! मगध | सावधान ! इतना अत्याचार ! सहना असम्भव है। तुझे उलट दूंगा। नया बनाऊँगा-नही तो नाश ही करूंगा। (ठहर कर) एक बार चलूं -नन्द से कहूँ ! नही-परन्तु मेरी भूमि, मेरी वृत्ति-वही मिल जाब, मैं शास्त्र-व्यवसायी न रहूँगा, मै कृषक बनंगा। मुझे राष्ट्र की भलाई- बुराई से क्या । तो चलू। (देखकर) यह एक लकडी का स्तम्भ अभी उसी झोपड़ी का खड़ा है, इसके साथ मेरे बाल्यकाल की सहस्रो भावरिय, लिपटी हुई है, जिन पर मेरी धवल मधुर हँसी का आवरण चढा रहता ! शैशव को रमृति ! विलीन हो जा! [खम्भा खींच कर गिरता हुआ चला जाता है] दृश्या न्त र - चन्द्रगुप्त : ५३७