पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५७८

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1 पर्वतेश्वर-पिप्पिली-कानन के मौर्य भी तो वैसे ही वृषल हैं, उनको राज- सिंहासन दीजियेगा? चाणक्य-आर्य-क्रियाओं का लोप हो जाने से इन लोगों को वृषलत्व मिला, वस्तुतः ये क्षत्रिय हैं। बौद्धों के प्रभाव में आने से इनके श्रोत-संस्कार छूट गये हैं- अवश्य, परन्तु इनके क्षत्रिय होने में कोई सन्देह नही। और महाराल | धर्म के नियामक ब्राह्मण है, मुझे पात्र देखकर उसका संस्कार करने का अधिकार है। ब्राह्मणत्व एक सार्वभौम एवम् शाश्वत बुद्धि-वैभव है। वह अपनी रक्षा के लिए, पुष्टि के लिए और सेवा के लिए इतर वर्णों का सगठन कर लेगा। राजन्य-संस्कृति से पूर्ण-मनुष्य को मू मिषिक्त करने में दोष क्या है ? पर्वतेश्वर-(हंसकर) यह आपका सुविनार नही है ब्रह्मन् चाणक्य-वसिष्ठ का ब्राह्मणत्व जब पीडित हुआ था, तब-पल्लव, दरद, काबोज आदि क्षत्रिय बने थे । राजन् यह कोई नई बात नही है । पर्वतेश्वर-वह समर्थ ऋषियो की बात है । चाणक्य-भविष्य इसका विचार करता है कि ऋषि किसे कहते हैं । क्षत्रियाभि- मानी पौरव ! तुम इसके निर्णायक नही हो सकते हो। पर्वतेश्वर -शूद्र शासित राष्ट्र मे रहने वाले ब्राह्मण के मुख से यह बात शोभा नहीं देती। चाणक्य-तभी तो ब्राह्मण मगध को क्षत्रिय-शासन मे ले आना जाहता है। पौरव ! जिसके लिए कहा गया है, कि क्षत्रिय के शस्त्र धारण करने पर आर्तवाणी नहीं सुनाई पडनी चाहिये, मौर्य चन्द्रगुप्त वैसा ही क्षत्रिय प्रमाणित होगा। पर्वतेश्वर :-कल्पना है। चाणक्य-प्रत्यक्ष होगी ! और, स्मरण रखया-आसन्न यवन-युद्ध मे, शौर्य के गर्व से तुम पराभूत होगे। यवनो के द्वारा समग्र आर्यावर्त पादाक्रात होगा। उस समय तुम-मेरा स्मरण करोगे। पर्वतेश्वर-केवल अभिशाप अस्त्र लेकर ही तो ब्राह्मण लड़ते हैं। मैं इससे नही डरता । परन्तु डराने वाले ब्राह्मण । तुम मेरी सीमा के बाहर हो जाओ। चाणक्य-(ऊपर देखकर)-रे पददलित ब्राह्मणत्व ? देख, शूद्र ने निगड़बय किया, क्षत्रिय निर्वासित करता है, तब जल-एक बार अपनी ज्वाला से जल ! उसकी चिनगारी से तेरे पोषक वैश्य, सेवक शूद्र, और रक्षक क्षत्रिय उत्पन्न हों। जाता हूँ पौरव ! [उपेक्षा से देखते पर्वतेश्वर एक ओर जाता है दूसरी ओर अब्ध चाणक्य] श्या न्त र 1 ५५८प्रसाद वाङ्मय