पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५९६

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आता है, निश्वास फेंककर चला जाता है । क्या पृथ्वीतल रोने के लिए ही है ? नहीं सबके लिए एक नियम तो नहीं ! कोई रोने के लिए है तो कोई हंसने के लिए- (विचारती हुई) आजकल तो छुट्टी-सी है, परन्तु विदेशियों का एक विचित्र-सा दल यहाँ ठहरा है, उनमे से एक को तो देखते ही डर लगता है। लो देखो--वह युवक आ गया। [सिर झुकाकर फूल संवारने लगती है/ऐंद्रजालिक के वेश में चन्द्रगुप्त का प्रवेश] चन्द्रगुप्त-मालविका ! मालविका |-क्या आज्ञा है ! चन्द्रगुप्त-तुम्हारे नागकेशर की क्यारी कैसी है ? मालविका हरी-भरी । चन्द्रगुप्त--आज कुछ खेल भी होगा--देखोगी ! मालविका-खेल तो नित्य देखती हूँ। न जाने कहाँ से लोग आते है और कुछ-न-कुछ अभिनय करते हुए चले जाते है। इसी उद्यान के कोने से बैठी हुई सब देखा करती हूँ। चन्द्रगुप्त मालविका, तुबको कुछ गाना आता है । मालविका -आता तो है, परन्तु"" चन्द्रगुप्त--परन्तु क्या ? मालविका-युद्धकाल है-देश मे रण-चर्चा छिडी है । आजकल मालवस्थान में कोई गाता-बजाता नही। चन्द्रगुप्त--रण-भेरी के पहले यवि मधुर मुरली की एक तान सुन लूं, तो हानि न होगी--मालविका ! न जाने क्यो आज ऐमी कामना जाग पड़ी है । मालविका- --अच्छा सुनिये-- चाणक्य- -(सहसा प्रवेश कर) छोकरियों से बाते करने का समय नही है मौर्य,! चन्द्रगुप्त--नही गुरुदेव ! मैं आज ही पिपाशा के तट से आया हूं, यवन शिविर भी घूमकर आया हूँ। चाणक्य-क्या देखा? चन्द्रगुप्त [--समस्त यवन-मेना शिथिल हो गयी है। मगध का इन्द्रजाली मानकर मुझसे यवन-सनिको ने वहाँ की सेना का हाल पूछा। मैंने कहा, पंचनद के सेनिकों से भी दुर्धर्ष कई लक्ष रण-कुशल योद्धा शतद्रु-तट पर तुम लोगों की प्रतीक्षा कर रहे है । यह सुनकर नन्द के पास कई लाख सेना है, उन लोगों में आतंक छा गया और एक प्रकार का विद्रोह फैल गया । ५७६ : प्रसाद वाङ्मय