पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५९९

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अलका -क्षपणक-वेश में गीत गाता हुआ-भीख मांगता आया था, संकेत से अपना तात्पर्प कह सुनाया। सिंहरण-तो क्या आर्य चाणक्य जानते हैं कि मैं यहाँ बन्दी हूं। अलका-हां, आर्य चाणक्य इधर की सब घटनाओं को जानते हैं । सिंहरण-तब तो मालव पर शीघ्र ही आक्रमण होगा ! अलका-कोई डरने की बात नहीं, क्योंकि चन्द्रगुप्त को साथ लेकर आर्य ने वहां पर एक बड़ा भारी कार्य किया है। क्षुद्रकों और मालवों में सन्धि हो गयी है। चन्द्रगुप्त को उनकी सम्मिलित सेना का सेनापति बनाने का उद्योग हो रहा है। सिंहरण-(उठकर) तब तो अलका -मुझे शीघ्र पहुंचना चाहिये । अलका-परन्तु तुम बन्दी हो। सिंहरण-जिस तरह हो सके अलके मुझे पहुंचाओ। अलका-(कुछ सोचने लगती है) तुम जानते हो कि मैं क्यों बन्दिनी हूँ ? सिंहरण-क्यों? अलका-आंभीक से पर्वतेश्वर की सन्धि हो गयी है और स्वयं सिकन्दर ने विरोध पटाने के लिए पर्वतेश्वर की भगिनी से आंभीक का ब्याह करा दिया है, परन्तु आंभीक ने यह जानकर भी कि मैं यहाँ बन्दिनी हूँ, मुझे छुड़ाने का प्रयत्न नहीं किया। उसकी भीतरी इच्छा थी, कि पर्वतेश्वर की कई रानियों में से एक मैं भी हो जाऊं, परन्तु मैंने अस्वीकार कर दिया। सिंहरण-अलका, तब क्या करना होगा? अलका-यदि मैं, पर्वतेश्वर से ब्याह करना स्वीकार करूं-तो सम्भव है तुमको छुड़ा हूँ। सिंहरण-मैं-अलका-मुझसे पूछती हो ? अलका-दूसरा उपाय क्या है ? सिंहरण-मेरा सिर घूम रहा है-अलका-तुम पर्वतेश्वर की प्रणयिनी बनोगी! अच्छा होता कि इसके पहले मैं ही न रह जाता। अलका-क्यों मालव, इसमें तुम्हारी कुछ हानि है ? सिंहरण-कठिन परीक्षा न लो अलका ! बड़ा दुर्बल हूँ। मैंने जीवन और मरण में तुम्हारा संग न छोड़ने का प्रण किया है। अलका-मालव, देश की स्वतन्त्रता तुम्हारी आशा में है। सिंहरण-और तुम पश्चनद की अधीश्वरी बनने की आशा में ! तब, मुझे रणभूमि में प्राण देने की आज्ञा दो। अलका-(हँसती हुई) चिढ़ गये। आर्य चाणक्य की आज्ञा है कि थोड़ी देर पञ्चनद का सूत्र-संचालन करने के लिए मैं यहाँ की रानी बन जाऊँ। चन्द्रगुप्त : ५७९