पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६१

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सिल्यूकस-क्यों ? उसने तो हम लोगों को मुक्त कर दिया था। फिर अवरोध क्यों? मेगास्थनीज-यह उसके मन्त्री चाणक्य की चाल है। उसने प्रसिद्ध कर रखा है कि 'यह सेना आप लोगों को रोकने के लिए नही प्रत्युत आपकी रखवाली के लिये है।' सिल्यूकस-उन लोगों का तात्पर्य क्या है ? जब एक बार मैत्री हो गयी फिर ऐसा क्यों? मेगस्थिनीज 1-सम्भव है कि वह कुछ नियम स्वीकार कराना चाहता हो । सिल्यूकस-क्यों ? क्या ग्रीक इतने कायर हो गये ? साइबटियस - आपको अपने उस रक्षित साम्राज्य का भी ध्यान रखना चाहिये। सिल्यूकस -क्या कोई नया समाचार उधर से आया है। साइबटियस-आण्टिगोनस शीघ्र ही मीरिया पर चढ़ाई करना चाहता है (पत्र देकर) इसे पढ़ लीजिये उमका ध्यान करके चन्द्रगुप्त से सन्धि कर लेना ही ठीक होग । क्योंकि यह आपका प्रबल शत्रु है जो आपके समीप है। सिल्यूकस- (पत्र पढ़कर) अच्छा मैं यह कार्य तुम दोनों आदमियों के ऊपर छोड़ता हूँ। इसे जैसा ठीक समझो, करो । (दोनों जाते हैं।) कार्नेलिया से भी तो पूर्वी वह क्या कहती है । (जाता है) [पटाक्षेप] सातवाँ दृश्य [प्रकोष्ठ-कार्नेलिया गाती है] (पद्य सोहनी) कार्नेलिया-कैसी कड़ी रूप की ज्वाला। पड़ता है पतंग-सा इसमें, मन का ढंग निराला। सान्ध्य गगन-सी रागमयी यह बड़ी कड़ी है हाला॥ कांटे छिपे गुंथे है इसमें है फूलों की माला । चुभने पर नहि अलग हृदय से, मन होता मतवाला ।। शृङ्गार और वीर का कैसा सुन्दर समावेश है। अहा कसी वीरत्व व्यंजक मुखाकृति है ! वह एक बार, केवल एक बार देखकर भुलायी जा सकती थी। पर यह दूसरा दर्शन दुबारा खीची हुई मदिरा की रह हृदय को उन्मत्त बनाये देता है। (ठहरकर) किन्तु बाबा को उसने पराजित किया। बन्दी बनाया। फिर मेरा हृदय क्यों उसकी ओर इतना आकर्षित होता है। कभी नही. कभी नही। मैं अपने हृदय कल्याणी परिणय : ४५