पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६३

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सिल्यूकस-चुप क्यों हो गये, कहो, वे नियम चाहे कितने ही कड़े हों पर मैं उन्हें ध्यान से सुनना चाहता हूं। मेगास्थिनीज-सुनिये, चन्द्रगुप्त का प्रधान मन्त्री चाणक्य ब्राह्मण है, उसने कहा कि यदि सन्धिबन्धन-दृढ़ रखना चाहें तो ग्रीक सम्राट् अपनी कन्या का विवाह महाराज चन्द्रगुप्त से कर दें। तब, सम्भव है कि महाराज चन्द्रगुप्त भी उपस्थित ग्रीस-विप्लव में तुम्हारी कुछ सहायता करें। सिल्यूकस-क्या चन्द्रगुप्त को मालूम हो गया कि आण्टिगोनस से और हमसे शीघ्र कोई लड़ाई होने वाली है। मेगास्थिनीज -इतना ही नहीं, उसका मन्त्री चाणक्य कहता था कि 'सिकन्दर' के साम्राज्य में जो भावी ग्रीस-विप्लव है उसे मैं अच्छी तरह समझ रहा हूँ। ऐसी अवस्था में सिल्यूकस भारत की आशा छोड़ें। उनको सीरिया मिलना भी कठिन हो जायगा। इस कारण ग्रीक-सम्राट् यदि चन्द्रगुप्त को अपना बन्धु बनायेगे तो उनको बहुत-कुछ सहायता मिलेगी। इसके अतिरिक्त इस विशाल भारत की सम्राज्ञी भी तो उन्हीं की कन्या होगी। मनुष्य सन्तान के लिए ही सब कुछ करता है, इस सम्बन्ध से भारत का साम्राज्य भी आपके प्रेम-बन्धन में बंधा रहेगा। सिल्यूकस-मेगस्थिनीज, इन हिन्दुओं में केवल बाहुबल की ही प्रधानता नहीं है बल्कि ये बड़े तीक्ष्ण बुद्धि भी होते है। (ठहरकर) क्या इन भीमकाय हाथियों का झुण्ड सीरिया युद्ध में कुछ काम दे सकता है ? मेगास्थिनीज-सम्राट् । मेरी समझ में तो ये अवश्य आपको विजय दिलायेंगे। सिल्यूकस-किन्तु, दो भिन्न जातियों में विवाह किस प्रकार हो सकता है। मेगास्थिनीज -क्या आप उस पारस-कुमारी का ध्यान भूल गये जो राजकुमारी की गर्भधारिणी थीं। सिल्यूकस-(स्वगत) बेटी की अनुमति तो एक प्रकार से मिल चुकी है। वह तो चन्द्रगुप्त पर अनुरक्त हुई है। (प्रगट) क्या तुम्हारी इच्छा है कि यह सन्धि जिस प्रकार हो अवश्य कर ली जाय । मेगास्थिनीज-भारत-सम्राट् से ग्रीक-सम्राट् यदि सम्बन्ध रखें तो यह अच्छी बात है, क्योंकि यह सर्वथा उपयुक्त है। सिल्यूकस-अच्छा । (दोनों जाते हैं) [पटाक्षेप] कल्याणी परिणय : ४७