पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६३९

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क्षमा-कौन करेगा ! तुम ? कदापि नही ! तुम्हारे घृणित अपराधों का न्याय होगा। नन्द- -(तनकर) तब रे मूर्यो ! देखो नन्द की निष्ठुरता ! प्रतिहारी ! राजसिंहासन संकट में है ! आओ, आज हमें प्रजा से लड़ना है ! [प्रतिहारी प्रहरियों के साथ आगे बढ़ता है | कुछ युद्ध होने के साथ ही राजपक्ष के कुछ लोग मारे जाते हैं और एक सैनिक आकर नगर के ऊपर आक्रमण होने की सूचना देता है | युद्ध करते-करते चन्द्रगुप्त नन्द को बन्दी बनाता है | चाणक्य का प्रवेश] चाणक्य-नन्द ! शिखा खुली है। फिर खिचवाने की इच्छा हुई इसलिए आया हूँ। राजपद के अपवाद नन्द ! आज तुम्हारा विचार होगा। नन्द-तुम ब्राह्मण । मेरे टुकड़ों से पले हुए -दरिद्र : तुम मगध के सम्राट् का विचार करोगे ! तुम सब लुटेरे हो, डाक हो । विप्लवी हो अनार्य हो ! चाणक्य-(राजसिंहासन के पास जाकर) "द ! तुम्हारे ऊपर इतने अभियोग हैं-महापद्म की हत्या, शकटार को तन्टी करना - उसके सातों पुत्रों को भूख से तड़पाकर मारना । सेनापनि मौर्य की हत्या का उद्योग--उसकी स्त्री और वररुचि को बन्दी बनाना ! कितनी ही कुलीन कुमारियों का सतीत्वनाश -नगर भर में व्यभिचार का स्रोत बहाना ! ब्रह्मस्व और अनाथो की वृत्तियों का अपहरण ! अन्त में सुवासिनी पर अत्याचार -शकटार की एकमात्र बची हुई सन्तान- सुवासिनी, जिसे तुम अपनी घणित पाशव-वृ -वृत्ति का- नागरिक-(बीच में रोककर हल्ला मचाते हुए) पर्याप्त है ! यह पिशाच लीला और सुनने की आवश्यकता नही, मब प्रमाण यही उपस्थित है । चन्द्रगुप्त-ठहरिये (नन्द से) कुछ उत्तर देना चाहते है ? नन्द-कुछ नही । ('वध करो-हत्या करो'-का आतंक फैलता है) चाणक्य-तब भी कुछ समझ लेना चाहिये, नन्द ! हम ब्राह्मण-तुम्हारे लिए, भिक्षा मांगकर तुम्हें जीवन-दान दे सकते हैं ! लोगे ['नहीं मिलेगी, नहीं मिलेगी' को उत्तेजना/कल्याणी को बंदिनी बनाये पर्वतेश्वर का प्रवेश नन्द-आह बेटी, असह्य ! मुझे क्षमा करो! चाणक्य, मैं कल्याणी के साथ जंगल में जाकर तपस्या करना चाहता हूँ। चाणक्य-नागरिक वृन्द ! आप लोग आज्ञा दें--नन्द को जाने की आज्ञा- -(छुरा निकालकर न द की छाती में घुसेड़ते हुए) सात हत्याएं -नन्द यदि सात जन्मों में मेरे ही द्वारा मारा जाय तो मैं उसे क्षमा कर सकता -मगध नन्द के बिना भी जी सकता है। शकटार- चन्द्रगुप्त : ६१९