पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६५

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? [तरलिका का प्रस्थान । दौवारिक का प्रवेश] दौवारिक-महाराजाधिगज की जय हो । महामात्य चाणक्य जी आ रहे हैं । [चाणक्य का प्रवेश । चन्द्रगुप्त उठकर उन्हें बिठाता है] चन्द्रगुप्त-गुरुदेव ! सन्धि क्या स्वीकृत हो गई ? (हँसकर) आपकी मन्त्रणा बडी गूढ होती है। कुछ समझ मे नही आती। चाणक्य वत्म ! तुम राजा ठहरे, तुम्ही गोचो कि शत्रु को पाकर भी तुमने क्यों छोड दिया? यह भी क्या हमारी मन्त्रणा मे किया गया था चन्द्रगुप्त-गुरुदेव ! एक बार एक ग्रीव-मम्राट ने महाराज पुरु के साथ ऐसा ही व्यवहार किया था। चाणक्य--अस्तु, अब तुम्हे मालग हो जाता है--चाणक्य ने क्या किया। (तूर्यनाद-दौवारिक के साथ सिल्यूकस, कार्नेलिया, साइबटियस और मेगास्थिनीज ना प्रवेश । चाणक्य सबको यथास्थान बिठाता है) मिल्यूकस-महाराज नन्द्रगुप्त ! आपके शौर्य मे हम बहुत प्रसन्न हैं । चन्द्रगुप्त-यह आपकी महानुभावता है । सिल्यूकस में आपमे महर्ष मैत्री करूँगा ! मेगास्थिनीज--और यह बन्धन दृढ होवे इसलिए राजकुमारी का विवाह भी महाराज चन्द्रगुप्त से हो जाय तो अन्छा है। चाणक्य-हाँ ठीक है। दो बालू के करारों को यथास्थान ठीक रखने के लिए एक सरला मरिता की आवश्याता है। चन्द्रगुप्त -(सलज्ज) जैमी गुरुवर की आज्ञा । (सिल्यूकम-कार्नेलिया को साथ में लिये बढ़ता है। चाणक्य, चन्द्रगुप्त से कल्याणी का हाथ मिता देता है। दोनों साथ बैठते हैं, चन्द्रगुप्त उसे माला पहनाता है और वह सादर ग्रहण करती है) मिल्यूकस-बेटी ! इगमे उपयुक्त वर तुम्हारे लिये मै नही खोज सकता था। और पिता का वन्या के लिये यही प्रधान पर्तव्य है। कल्याणी-जैमी पि [ की आज्ञा । सिल्यूकस -और तुम्हे उपहार स्वरूप मै आरकोगिया और जैड्रोसिया आदि प्रदेश देता हूं। कल्याणी-बाबा ! क्या आप मुझे यहाँ छोड़ देगे । शिल्यूकस ही बेटी ! मेगास्थिनीज़ बराबर यहाँ आया करेगा। चाणक्य-तो क्या आप शीत स्वदेश जोर प्रस्थान कीजियेगा। सिल्यूस-मुझे अपने एप्रिल शत्र रो मामना करना होगा। कल्याणी परिणय : ४९ ४