पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६६३

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आन्दोलित कर । स्मृति बड़ी निष्ठुर है । यदि प्रेम ही जीवन का सत्य है--तो संसार ज्वालामुखी है। [सिल्यूकस का प्रवेश] सिल्यूकस -- तो बेटी, तुमने इसे अपने पास रख ही लिया ! मन बहलेगा, अच्छा तो है । मैं भी इसी समय जा रहा हूँ, कल ही आक्रमण होगा। देखो, सावधान रहना ! कार्नेलिया-किस पर आक्रमण होगा ? पिताजी ! सिल्यूकस-चन्द्रगुप्त की सेना पर। वितस्ता के इस पार सेना आ पहुंची है, अब युद्ध में विलम्ब नही। कार्नेलिया-पिताजी, उसी चन्द्रगुप्त से युद्ध होगा, जिसके लिए उस साधु ने भविष्यवाणी की थी ? वही तो भारत का सम्राट् हुआ न ? सिल्यूकस-हाँ, बेटी, वही चन्द्रगुप्त ! कार्नेलिया-पिताजी, आपने ही मृत्यु-मुख से उसका उद्धार किया था और उसी ने आपके प्राणों की रक्षा की थी? सिल्यूकस-हां, वही तो! कार्नेलिया-और उसी ने आपकी कन्या के सम्मान की रक्षा की थी- फिलिप्स का वह अशिष्ट आचरण पिताजी ! सिल्यूकस-तभी तो बेटी, मैंने साइबर्टियस को दूत बनाकर समझाने के लिए भेजा था। किन्तु उसने उत्तर दिया कि मैं सिल्यूकस का कृतज्ञ हूँ-तो भी क्षत्रिय हूँ. रणदान जो भी मांगेगा, उसे दूंगा। युद्ध होना अनिवार्य है। कार्नेलिया T-तब मैं कुछ नही कहती। सिल्यूकस-(प्यार से) तू रूठ गयी बेटी ! भला अपनी कन्या के सम्मान की रक्षा करनेवाले का मैं वध करूँगा ? सुवासिनी-फिलिप्स को द्वन्द्व-युद्ध में सम्राट् च दगुप्त ने मार डाला । सुना था, इन लोगों का कोई व्यक्तिगत विरोध.. सिल्यूकस-तुम चुप रहो !--(कार्नेलिया से) बेटी, मैं चन्द्रगुप्त को क्षत्रप बना दूंगा, बदला चुक जायगा । मै हत्यारा नहीं-बिजेता सिल्यूकस हूँ। (प्रस्थान) कार्नेलिया-(दीर्घ निःश्वास लेकर) रात अधिक हो गयी, चलो सो रहें ! सुवासिनी, तुम कुछ गाना जानती हो ? सुवासिनी-जानती थी भूल गयी हूँ। कोई वाद्य-यंत्र तो आप न बजाती होंगी?--(आकाश की ओर देखकर) रजनी कितने रहस्यों की रानी है, राजकुमारी ! कार्नेलिया-रजनी ! मेरी स्वप्न-सहचरी ! चन्द्रगुप्त ६४३