पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६६८

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सिल्यूकस-तो ग्रीक इतने कायर हैं ! युद्ध होगा साइबटियस ! हम सबको मरना होगा। मेगास्थनीज-(पत्र देकर) इसे पढ़ लीजिये, सीरिया पर औटिगोनस की चढ़ाई समीप है। आपको उस पूर्व संचित और सुरक्षित साम्राज्य को न गंवा देना चाहिये। सिल्यूकस -(पत्र पढ़कर विषाद से)-तो वे चाहते क्या हैं ? मेगास्थनीज -सम्राट् ! संधि करने के लिए तो चन्द्रगुप्त प्रस्तुत है, परन्तु नियम बड़े कड़े हैं । सिंधु के पश्चिम के प्रदेश-आर्यावर्त की नैसर्गिक सीमा-निषध- पर्वत तक वे लोग चाहते हैं । और भी.. ल्यूकस-चुप क्यों हो गये ? कहो--कहो, चाहे वे शब्द कितने ही कटु हों, मैं सुनना चाहता हूं। मेगास्थनीज-चाणक्य ने एक और भी अडंगा सगाया है। उसने कहा है, सिकन्दर के साम्राज्य में जो भावी विप्लव हैं, वह मुझे भलीभांति अवगत है । पश्चिम का भविष्य रक्त-रंजित है, इसलिए यदि पूर्व मे स्थायी शांति चाहते हो तो ग्रीक-सम्राट चन्द्रगुप्त को अपना बन्धु बना लें। सिल्यूकस-सो कैसे ? मेगास्थनीज-राजकुमारी कार्नेलिया का सम्राट चन्द्रगुप्त से परिणय करके । सिल्यूकस-अधम-ग्रीक ! तुम इतने पतित हो ! मेगास्थनीज-क्षमा हो सम्राट् ! वह ब्राह्मण कहता है कि आर्यावर्त की साम्राज्ञी भी तो कार्नेलिया ही होगी। साइबटियस-परन्तु राजकुमारी को सम्मति चाहिये । सिल्यूकस--असम्भव ! घोर अपमानजनक ! मेगास्थनीज-मैं क्षमा किया जाऊं तो-सम्राट् ! राजकुमारी का चन्द्रग्स से पूर्व परिचय भी है। कौन कह सकता है कि प्रणय अपनी अदृश्य सुनहली रश्मियों से एक-दूसरे को न खींच चुका हो ! सम्राट सिकन्दर के अभियान का स्मरण कीजिये- मैं उस घटना को भूल नही गया हूं। सिल्यूकस-मेगास्थनीज-मैं यह जानता हूँ । कार्नेलिया ने इस युद्ध में जितनी बाधायें उपस्थित की, वे सव -साक्षी है कि उसके मन में कोई भाव है, पूर्व-स्मृति है, फिर भी-फिर भी न जाने क्यों ! वह देखो, आ रही है ! तुम लोग हट तो जाओ! [साइबटियस और मेगास्थनीज का प्रस्थान बोर कार्नेलिया का प्रवेश कार्नेलिया-पिताजी ! सिल्यूकस-बेटी कार्नी ! ६४८ :प्रसाद वाङ्मय