पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६८३

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ओर गूढ़ दृष्टि से देखकर) और तुम्हारे हृदय में इसे सूचित करने "व्यक्त करने के लिए इतनी आकुलता. प्रेमलता--ठहरिये तो, मैं प्यार करती हूँ कि नही, पहले इस पर भी मुझे दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिये । आनंद -(विरक्ति प्रकट करता हुआ) उँह, दृढ़ निश्चय को बीच में लाकर तुमने मेरी विचार-धारा दूसरी ओर बहा दी। दृढ़ निश्चय ! एक बंधन है। प्रेम की स्वतंत्र आत्मा को बंदीगृह में न डालो। इससे उसका स्वास्थ्य, सौंदर्य और सरलता सब नष्ट हो जायगी। प्रेमलता-ऐं ! (और भी कई व्यक्ति आश्चर्य से) ऐं ! आनंद-हाँ-हां, उस नियमबद्ध प्रेम-व्यापार का बड़ा ही स्वार्थपूर्ण विकृत रूप होगा। जीवन का लक्ष्य भ्रष्ट हो जायगा। प्रेमलता-(आश्चर्य से) और वह लक्ष्य क्या है ? आनंद-विश्व-चेतना के आकार धारण करने की चेष्टा का नाम 'जीवन' है। जीवन का लक्ष्य 'सौंदर्य' है, क्योंकि आनंदमयी प्रेरणा जो उस चेष्टा या प्रयत्न का मूल •हस्य है, स्वस्थ –अपने आत्मभाव मे, निविशेष रूप से रहने पर सफल हो सकती है। दृढ़ निश्चय कर लेने पर उसकी सरलता न रहेगी, अपने मोह-मूलक अधिकार के लिए वह झगड़ेगी। प्रेमलता-किंतु अभी-अभी आपने नदी-तट पर जाल की कड़ियों को आपस में लड़ाते हुए मछुओं की बातें सुनी है । वे न-जाने..." आमन्द-सुनी हैं । आनंद के संबंध मे पहले एफ वात मेरी सुन लो । आनंद का अंतरंग सरलता है और बहिरंग सौदर्य है, इसी मे वह स्वस्थ रहता है । प्रेमलता-किंतु आपकी ये बाते समझ मे नही आती। आनन्द -(हंसकर) तो इसमें मेरा अपराध नही। पायः न समझने के कारण मेरे इस कथन का अर्थ उलटा ही लगाया जायगा, या तो पागल का प्रलाप समझा जायगा। किंतु करू क्या, वात तो जैसी है वैसी ही कही जायगी न ! उन • मझो को सरलता और सौंदर्य दोनों का ज्ञान नही। फिर आनंद के नाम पर वे दुःख का नाम क्यों लें? प्रेमलता-(उदास होकर) यदि हम लोगों की दृष्टि मे उनके यहां सौंदर्य का अभाव हो, तो भी उनके पास सरलता नही है, मै ऐसा नहीं मान सकती। आनन्द-तुम्हारा न मानने का अधिकार में मानता हूँ, किंतु वे अपने भीतर ज्ञाता बनने का निश्चय करके, अपने स्वार्थों के लिए दृढ़ अधिकार प्रकट करते हुए, अपनी सरलता की हत्या कर रहे थे और सौंदर्य को मलिन बना रहे थे। काल्पनिक दु.खों को ठोस मानकर" एक बूंट : ६६३