पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६८९

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नाम... रसाल-होता है, किंतु वह दुःख मोह का है, जिसे प्रायः लोग प्रेम के सिर मढ़ देते हैं । आपका प्रेम, आनंदजी के सिद्धांत पर सबसे सम-भाव का होना चाहिए । भाई, पिता, माता और स्त्री को भी इन विशेष उपाधियों से मुक्त होकर प्यार करना सीलिए । सीखिए कि हम मानवता के नाते. स्त्री को प्यार करते है। मानवता के (सब लोग वनलता की ओर देख व्यंग्य से हँसने लगते हैं। रसाल जैसे अपनी भूल समझता हुआ चुप हो जाता है) वनलता-(भवें चढ़ाकर तीखेपन से) हां, मानवता के नाम पर, बात तो बड़ी अच्छी है। किंतु मानवता आदान-प्रदान चाहती है, विशेष स्वार्थों के साथ । फिर क्यो न झरनों, चांदनी रातों, कुंज और बनलताओ को ही प्यार किया जाय- जिनकी किसी से कुछ मांग नही । (ठहरकर) प्रेम की उपासना का एक केंद्र होना चाहिए, एक अंतरंग साम्य होना चाहिए । प्रेमलता-मानवता के नाम पर प्रेम की भीख देने में प्रत्येक व्यक्ति को बड़ा गर्व होगा। उसमे समर्पण का भाव कहाँ? कुज- सो तो ठीक है, किंतु अंतरग साम्यवाली बात पर गै भी एक बात कहना चाता हूँ। अभी कल ही मैने 'मधुग' मे एक टिप्पणी देखी थी और उसके साथ कुछ चित्र भी थे, जिनमे दो व्यक्तियो की आकृति का साम्य था। एक वैज्ञानिक कहता है कि प्रकृति जोडे उत्पन्न करती वनलता -(शीघ्रता से) और उसका उद्देश्य दो को परस्पर प्यार करने का संकेत करना है। क्यो, यही न ? किंतु प्यार करने के लिए हृदय का साम्य चाहिए, अंतर की समता चाहिए । वह कहाँ मिलती है ? दो समान अंतःकरणों का चित्र भी तुमने देखा है ? सो भी- कुंज-एक स्त्री और एक पुरुष का, यही न । (मुंह बनाकर) ऐमा न देखने का अपराध करने के लिए मै क्षमा मांगता हूँ। [सब हंसने लगते हैं। ठीक उसी समय एक चंदुला, गले में विज्ञापन लटकाये आता है। उसकी चॅदुली खोपड़ी पर बड़े अक्षरों में लिखा है 'एक घुट'-और विज्ञापन में लिखा है "पीते ही सौदर्य वमकने लगेगा।" स्वास्थ्य के लिए सरलता से सुधारस मिला हुआ सुअवमर हाथ से न जाने बीजिए-पीजिए 'एक घुट'] कुंज-(उसे देखकर आश्चर्य से) हमारे आश्रम के आदर्श शब्द ! सरलता, स्वास्थ्य और सौंदर्य । वाह ! रसाल-और मेरी कविता का रीर्षक 'एक चूंट' ! चंदुला-(वांत निकालकर) तब तो मै भी आप ही लागो की सेवा कर रहा है। है न ? आप लोग भी मेरी सहायता कीजिये । इसीलिए मैं यहाँ.... एक चूंट : ६६९