पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६९७

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आनन्द-(हताश होकर अंतिम आक्रमण करता हुआ) तो क्या आपने खोज लिया है-यहचान लिया है ? वनलता--मैंने तो पहचान लिया है। कितु वही, मेरे जीवन-धन अभी नही पहचान सके । इमी का मुझे... [रसाल आकर प्यार से वनलता का हाथ पकड़ता है और आनन्द को गूढ़ दृष्टि से देखता है] आनद- अरे आप पही- रसाल -जी"(वनलता से) प्रिये । आज तक मैं भ्रात था। मैंने आज पहचान लिया। यह कैसी भूल-भुलैया थी। आनद-तो मै चलू""(सिर खुजलाने लगता है) वनलता -यही तो मेरे प्रियतम । आनंद - (अलग खड़ा होकर) यह क्या । यही क्या मेरे सदेश का मेरी आकाक्षा का व्यक्ति रूप है । (वनलता और रमाल परस्पर स्निग्ध दृष्टि से देख रहे है। आनंद उस सुंदरता को देखकर धीरे-धीरे मन में सोचता-सा) असख्य जीवनो की भूल-भलवा मे अपने चि""""""रि""चि " त-- [रसाल और वनलता दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े आनंद की ओर देखकर हँसते हुए, चले जाते है; आनंद उसी तरह चिता में निमग्न अपने- आप कहने लगता है :-] चिरपरिचित को खोज निकालना । कितनी असभव बात | किंतु"परन्तु" बिल्कुल ठीक""मिलते है - हाँ मिल ही जाते है, खोजने वाला चाहिए । प्रेमलता -(सहसा हाथ मे शर्बत लिये प्रवेश करके) खोजते-खोजते मैं तो थक गयी। और शर्बत छलकते-छलकते क्तिना बना, इमे आप ही देखिए। आप यही बैठे है और मैं कहाँ-कहाँ खोज आई। आनंद-मुझे आप खोज रही थी? प्रेमलता-हाँ-हाँ, आप ही को (हँसती है) आनद-(रसाल और वनलता की बात मन-ही-मन-स्मरण करता हुआ) सचमुच । बडा आश्चर्य है । (फिर कुछ सोचकर) अच्छा, क्यो ? (प्रेमलता को गहरी दृष्टि से देखने लगता है) प्रेमलता-(जैसे खीसकर) आप ही ने कहा था न | कि मै जा रहा हूँ। भोजन तो न करूंगा। हां, शर्बत या ठढाई एक चूंट पी लूंगा। कहा था न ? मीठी नारंगी का शर्बत ले आयी हूँ। पी लीजिए एक घंट । एक चूंट . ६७७