पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/७११

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परिचारिका––जैसी आज्ञा। तो मैं कह आऊँ कि अमात्य से कल महादेवी बातें करेंगी?

ध्रुवस्वामिनी––(कुछ सोच कर) ठहरो तो, वह गुप्त-साम्राज्य का अमात्य है, उससे आज ही भेंट करना होगा। हाँ, यह तो बताओ, तुम्हारे राजकुल में नियम क्या है? पहले अमात्य की मंत्रणा सुननी पड़ती है, तब राजा से भेंट होती है?

परिचारिका––(दांतों से जीभ दबा कर) ऐसा नियम तो मैंने नही सुना। यह युद्ध-शिविर है न? परमभट्टारक को अवसर न मिला होगा। महादेवी! आपको सन्देह न करना चाहिए।

ध्रुवस्वामिनी––मैं महादेवी ही हूँ न? यदि यह सत्य है तो क्या तुम मेरी आज्ञा से कुमार चन्द्रगुप्त को यहाँ बुला सकती हो? मैं चाहती हूँ कि अमात्य के साथ ही कुमार से भी कुछ बातें कर लूँ।

परिचारिका––क्षमा कीजिए, इसके लिए तो पहले अमात्य से पूछना होगा।

[ध्रुवस्वामिनी क्रोध से उसकी ओर देखने लगती है और वह पान का डिब्बा रख कर चली जाती है / एक बौने का कुबड़े और हिजड़े के साथ प्रवेश]

कुबड़ा––युद्ध! भयानक युद्ध!!

बौना––हो रहा है, कि कहीं होगा मित्र!

हिजड़ा––बहनों, यही युद्ध करके दिखाओ न, महादेवी भी देख लें।

बौना––(कुबड़े से) सुनता है रे! तू अपना हिमाचल इधर कर दे––मैं दिग्विजय करने के लिए कुबेर पर चढ़ाई करूंगा।

[उसकी कूबड़ को दबाता है और कुबड़ा अपने घुटनों और हाथों के बल बैठ जाता है / हिजड़ा कुबड़े की पीठ पर बैठता है / बौना एक मोर्छल लेकर तलवार की तरह उसे घुमाने लगता है]

हिजड़ा––अरे! यह तो मैं हूँ नल-कूबर की वधू! दिग्विजयी वीर, क्या तुम स्त्री से युद्ध करोगे? लौट जाओ, कल आना। मेरे श्वशुर और आर्यपुत्र दोनों ही उर्वशी और रम्भा के अभिसार से अभी नहीं आये। कुछ आज ही तो युद्ध करने का शुभ मुहूर्त नहीं है।

बौना––(मोर्छल से पटा घुमाता हुआ) नहीं, आज ही युद्ध होगा। तुम स्त्री नहीं हो, तुम्हारी उँगलियाँ तो मेरी तलवार से भी अधिक चल रही है। कूबड़ तुम्हारे नीचे है। तब मैं कैसे मान लूँ कि तुम न तो नल-कूबर हो और न कुबेर! तुम्हारे वस्त्रों से मैं धोखा न खा जाऊँगा। तुम पुरुष हो, युद्ध करो।

हिजड़ा––(उसी तरह मटकते हुए) अरे, मैं स्त्री हूँ। बहनों कोई मुझसे ब्याह भले ही कर सकता है, लडाई मैं क्या जानूं?

ध्रुवस्वामिनी : ६९१