पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/७४३

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अग्निमित्र


प्रसाद वाङ्मय की यह अन्तिम और अपरिसमाप्त नाट्यकृति है जो इरावती उपन्यास में परिवर्त्तित हुई। इसके आरंभ में दृश्य संकेत और साढ़े आठ संवादों का क्षेपक लगाना परिस्थितिवशात् मेरे लिए अनिवार्य हो गया––इसके लिए पाठक मुझे क्षमा करें।

––रत्नशंकर प्रसाद