पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२०१

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अनिश्चित-सा है। इसमे न तो पौराणिक काल की महत्ता है और न है काव्य-काल का सौंदर्य । चेतना राष्ट्रीय पतन के कारण अव्यवस्थित थी। धर्म की आड़ में नये-नये आदर्शों की सृष्टि, भय से त्राण पाने की दुराशा ने इस युग के साहित्य में, अवध वाली धारा से मिथ्या आदर्शवाद और ब्रज की धारा से मिथ्या रहस्यवाद का सृजन किया। मिथ्या आदर्शवाद का उदाहरण-- जानते न अधम उधारन तिहारो नाम, और की न जाने पाप हम तो न करते ! मिथ्या रहस्यवाद ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावत । इसका प्रभाव इतना बढा कि शुद्ध आदर्शवादी महाकवि तुलमीदास का रामायण काव्य न होकर धर्म-ग्रन्थ बन गया। सच्चे रहस्यवादी पुरानी चाल की छोटी छोटी मंडलियों मे लावनी गाने और चग खडकाने लगे। आरंभिक पाठय काव्य : १०१