पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३२२

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X उनकी अडिग आस्था शान्त और सुन्दर में गहरे-गहरे धंसी हुई थी, तभी वह अपने सुख को विस्तृत कर सबको सुखी बनाने का सन्देश दे सके कि जैसे किसी की मीठी मुसकान देख कर हिमालय की हमी निर्झर के रूप मे फूट कर बह चले ! प्रसाद का 'आनन्द' निरा शास्त्रीय सिद्धान्त नही, उनकी तरल अनुभूतियो से छन कर सद्यःस्नात-सा गीला और ताजा है। सतही यथार्थ से कृच्छ आदर्श को न तोलें तो अभीष्ट की महार्घ उपलब्धि का मर्म मालूम होते देर न लगे । अस्तु, वह शङ्कराचार्य और विवेकानन्द के समान आत्म-द्रष्टा और शील, सस्कृति के अलौकिक स्रष्टा थे। उन्होंने उन्ही की प्रबोध-तृप्त आयु भी पाई । वह अमर हैं। X X सारी रात अन्तद्वन्द्वो मे पडा छटपटाता रहा। सन्ध्या समय श्री आनन्दमोहन वाजपेयी एम० ए० के अनामिका-कुटीर मे बैठा करता था। वह आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के यहां के थे । आज जैसे ही पहुंचा वह मेरी ओर 'लीडर' और 'भारत' के अङ्क बढ़ाते हुए बोले :-- प्रसाद जी नही रहे। थोड़ी देर निर्वाक् बैठा रहा, फिर बोझिल मन लेकर गेस्ट हाउस लौट आया। रायगढ़ के जीवन में डा० बलदेव प्रमाद मिश्र के अलावा वाजपेयी जी ही थे, जहाँ क्षण भर आत्मीयता का वातावरण मिलता था। प्रसाद और निराला हमारे वार्तालाप के मुख्य विषय होते। उन्होने अपनी बडी लड़की का नाम अनामिका और दूसरी का कामायनी रक्खा था। यों तो मैं माहित्य के अतिरिक्त वेदान्त का भी आचार्य हूँ और मर्त्य ही नही, स्वर्गलोक के जीवन की क्षणभंगुरता पर भी प्रवचन कर सकता हूँ, किन्तु प्रसाद के आकस्मिक निधन से 'दिल पे कुछ ऐसा वक्त पड़ा' कि भागने पर कही राह न मिले ! आत्मा मे अन्धकार भर जाने पर भी बुद्धि मे ऐसी वारीकी न आई कि कहूँ: मेरा तो फर्ज चमन-बन्दी-ए-जहां है फ़क़त मेरी बला से, बहार आये या खिजा गुजरे ! जो साहित्यिक पत्रकारिता को प्रसिद्धि और साहित्यिक राजनीति को सिद्धि का माध्यम मानते है, उन्हें प्रसाद की याद नही आएगी, वह कामायनी के धरातल से भारत-भारती के धरातल पर हिन्दी-कविता को बड़ी बहादुरी से ला पटकेंगे, वह उसी खुराफात को कविता कहेगे जिसे वह खूटा गाड़कर पैदा कर सकेगे, किन्तु जो इतने बुद्धिमान नहीं है उनके 'अबोध, अकिंचन देसुध चैतन्य की विकल वेदमा' किन शब्दों से बंधेगी? निष्ठुर खेलों पर जो अपने रहा देखता सुख के सपने, १८:प्रसाद वाङ्मय