पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४८५

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विद्यालय के अध्यापकों वाली बस्ती मे बाजार करने की आज जैसी सुविधा न थी और अध्यापकों को अपनी गृहस्थी के सामानों के लिए शहर दौड़ना होता था। अतएव प्रसादजी ने विश्वविद्यालय से अनुमति प्राप्त करके मगनभाई से वहां दुकान खुलवाई। विश्वविद्यालय ने एक उपयुक्त.क्वाटर भी दिया-गल्ला, किराना, वस्त्र, और लिखने-पढ़ने की सामग्री आदि सामान रखने के लिए। अपरम्पार विक्री होने लगी। इस दूकान पर प्रसादजी और मैं प्राय: दूसरे-तीसरे अपराह्न में जाया करते। एक दिन प्रसादजी ने दूकान के दर्जी को एक बड़ा अच्छा जरी का चोंगा दिया कि उसे काटकर वह उनके लिए एक जवाहर जैकेट बना दे। किन्तु, वह पुरानी कारीगरी का एक ऐसा अच्छा नमूना था कि मैंने उसे कला-परिषद के लिए मांग लिया। आज भी कलाभवन के वसन विभाग मे वह एक दर्शनीय वस्तु है। वहां एक अतर की दूकान भी खुली थी। जब दोनो दूकाने पूरी गतिवान हो गई तभी मगन- भाई के पिता के देहान्त की सूचना आई यद्यपि उनके पिता उनकी ओर से तटस्थ थे तथापि मगनभाई को एकाएक काम छोड़ देने वाले अपने स्वभाव को अच्छा अवसर मिला और वह बिना कुछ यहां का उचित प्रबन्ध किए चले गये। अस्तु, प्रसादजो को अपने एक निकट सम्बन्धी उमाप्रसाद को वहां की जिम्मेदारी सौंपनी पड़ी किन्तु उनमें उतनी योग्यता न थी। फलतः कार्य-गति एकदम पट हो गई और प्रसादजी की एक अच्छी खासी रकम जो विक्रेय-वस्तुओं की खरीद में लगी थी, फंस गई। अन्त में घाटा देकर उन्होंने वह काम बन्द कर दिया। बहुत कुशलता से उन्होंने इस घाटे से अपना पारम्परिक व्यवसाय बचा लिया। इसी प्रकार की उनकी व्यवहार कुशलता की एक और बात याद आती है। उनके मकान के सामने जो ऊंचा विशाल मैदान था उसकी सीमा पर एक मकान बिक रहा था। वेचनेवाला उसी मुहल्ले का था। वह उनके पास आया और मकान खरीद लेने का आग्रह किया, किन्तु वे बोले कि-'भाई, इस समय तो मुझे नहीं लेना है।' तब वह खुला और कहा कि दूसरा ग्राहक ठीक कर चुका हूँ। बैनामे पर आपकी गवाही की आवश्यकता है। उन दिनों 'हकशफा' नामक कानून चलता था जिसके अनुसार दो सटे मकानो मे यदि एक बिके और दूसरे के गृहपति को मालूम न हो तो उसे अधिकार था कि दावा करके बैनामा रद्द करा दे और उतना रुपया देकर वह मकान स्वयं प्राप्त कर ले। किन्तु बैनामे पर गवाही कर देने से वह उम अधिकार से वंचित हो जाता था। प्रसादजी तो व्यवहारदक्ष थे ही। उन्होंने कहा कि पहले उस ग्राहक को मेरे पास ले आओ, उससे बातें कर लूं तब बैनामे पर गवाही कर दूंगा। ग्राहक के आने पर उन्होंने उसे चेतावनी दी-'यदि तुम मकान खरीद कर मेरी जमीन की ओर खिड़की दरवाजा न खोलने का इकरारनामा लिख दो, तो मैं हस्ताक्षर कर दूंगा अन्यथा संस्मरण पर्व : १८१