पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५३९

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मे पत्र के साथ वे प्रसादजी के पास आये और उन्होने इसका निराकरण किया। प्रसादजी की अनुमति पाकर वे खिन्न मन लौट गये और दूसरे दिन पत्र छपा देखा गया उसी दिन शाम की गाडी से मै कलकत्ते आ गया । x कई मास वाद 'प्रसाद' जी का पत्र मुझे कलकत्त मे मिला । उन्होने लिखा था'यदि तुम दो-चार दिन के लिए काशी आ जाओ तो बडा अच्छा हो'। मैं उसी दिन शाम की गाड़ी से काशी के लिए रवाना हो गया। काशी पहुंचने पर 'प्रसादजी' इस बार मुझसे बड़ी प्रसन्न मुद्रा मे मिले। उन्होने कहा-'मुकुन्दीलाल, तुमने मुझसे चौधुराने का पद छुडवा कर मेरा बड़ा उपकार क्यिा । अब मेरे पास कोई नहीं आता, मुझे पर्याप्त समय मिल गया । देखो, मैंने एक महाकाव्य की रचना का आरम्भ क्यिा है। गत मे ऊपर वाले बडे कमरे मे हम दोनो का विस्तर लगा। सर्दी का दिन थावे कम्बल ओढकर पड गये, और कामायनी की पाण्डुलिपि मेरे हाथ मे देकर उन्होने कहा-'इसे धारा प्रवाह पढो, 'जब मेरी ममझ में कुछ नही आता और मै कुछ पूछता तो वे डाट बैठते तो बराबर पढते रहने के लिए कहते । यही क्रम कई दिनो तक लगा रहा। रात को दो या तीन बज जाते । फिर दूसरे दिन वे तो अपने समय पर ही उठ जाते पर मुझे कुछ विलम्ब हो जाता था। व्यापार और परिवार एक बार प्रसादजी ने मुझे काशी पहुंचने के लिए लिखा। उनका पत्र मिलने के दूसरे दिन ही मैंने भी काशी के लिए प्रस्थान कर दिया। मेरे काशी पहुँचने पर प्रसादजी' ने दो दिनो तक मुझमे कोई बात न की जिसके लिए उन्होने मुझे बुलाया था। अन्त मे मुझे ही पूछना पडा 'भैग्या आपने मुझे किस लिये बुलाया है ? कुछ बताया नही । उन्होने कहा 'बताऊँगा अभी ठहरो' । म ! फिर पूछ। - 'तो मुझे कब तक यहां ठहरना होगा। उन्होने कहा 'जब तक म जाने के लिए न कहूँ' । उस समय उनका चेहरा कुछ तमतमा-सा गया। मै भी चुप हो गया। दूसरे दिन हम दोनो बैठे थे । कुछ इधर-उधर की बाते चल रही थी। उस समय प्रसादजी कुछ भावुक मे और प्रसन्न मुदा मे प्रतीत हो रहे थे। अचानक उन्होंने मुझसे कहा-'तुम शिवालय के सामने वाली जमीन ले लो और मकान बना लो। अपना परिवार भी यही रखो'। मैंने उनसे पूछा 'भैग्या, ऐसा करने से आपका और मेरा क्या लाभ है ?' उन्होने कहा - 'इसमे तुम्हारा चाहे कोई लाभ न हो, पर मेरा बहुत लाभ होगा उसे अभी न बताऊँगा।' बात के ही क्रम मे उन्होने मुझसे फिर कहा-'जानते हो इस समय मेरे पास एक पैसा नही है'। यह सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ और मैने फिर पूछा -'भैय्या, कैश किसके हाथ मे रहता है ?' उन्होंने कहा संस्मरण पर्व : २३५