पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/९७

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सिकन्दर का शपथ वा मिंगलौर-विजय मूर्य की चमकीली किरणो के माथ ग्रीको के बरछे की चमक से मिंगलौर का दुर्ग घिरा हुआ है। सिकन्दर के दुर्ग तोडने वाले यन्त्र मिगलोर की दीवारो से लगा दिये गये है और वे अविराम अपने कार्य में लगे हुए है। उनके अव्यर्थ आघात से दुर्ग के प्राचीर का एक हिस्सा टूट गया और ग्रीक सेना जयनाद करती हुई दुर्ग • घुस पडी, पर वे पहाड से टकराये हुए तरग की समान पीछे हटाये गये और भारतीय वीरो की एक प्रबल सेन। उनका पीछा करती हुई दिखलाई पडी। सिकन्दर उनके प्रचण्ड अस्त्राघात को रोकता हुआ पीछे हटने लगा। मन्ध्या होने में देर नही है इसलिए ग्रीक सैनिक भी विश्राम करने के लिए कैम्प की ओर चले। ____ अफगानिस्तान मे मिगलौर दुर्ग प्रसिद्ध था। अफगान (asskinins=अश्वक) लोगो की सहायता करने के लिए भारत से सात हजार राजपूत वीर गये थे, जो कि सिकन्दर की सुशिक्षित विशाल सेना के सामने कुछ भी नहीं थे, पर उनकी वीरता सिकन्दर को चमत्कृत किये थी। गाजा और परसिपोलिस के विजेता के लिए मिंगलोर कुछ भी न था, पर तीन दिन तक लगातार आक्रमण करने पर भी सिकन्दर भारतीय वीरो के प्रचण्ड बल से विताडित और अपमानित ही होता गया । इस प्रकार विजय की सम्भावना न देखकर सिकन्दर हताश होकर कैम्प मे बैठा हुआ है। उस छोटे से पर्वतीय दुर्ग के विजय करने मे उसे जितना लाछित होना पडा, उसकी चिन्ता उसको बहुत सता रही थी। थोडी देर तक सोचने के बाद सिकन्दर उठा और दुर्ग की ओर बढने लगा, इस समय उसका मुख मण्डल कुछ विचित्र भावो के साथ क्रीडा कर रहा था। दुर्ग प्राचीर के उस भाग पर जो टूट जाने पर भी आवश्यकतानुसार ठीक कर दिया जा चुका था, प्रकाश हाथ में लिए हुए एक मनुष्य कुछ ध्यान से देख रहा था, थोडी देर देख लेने के बाद वह टहलने लगा। जब कभी उसके हाथ का प्रकाश हट जाता है तो केवल अन्धकार ही अन्धकार रह जाता है नही तो उस दुर्ग की प्रकाण्ड सिकन्दर का शपथ मिंगलौर-विजय . ९७