नहीं होती और उनकी बनावट से ऐसा मालूम होता है कि वे सूखी हैं। परन्तु वास्तव में वह सूखी नहीं होती। ऐसे स्थानों में उगनेवाले पौदों की पत्तियां बहुत पतली सूखी सी होती हैं। तुम इस बात का अनुमान खजूर, ताड़ इत्यादि के पत्तों से लगा सकते हो। तुम देखते हो कि इन वृक्षों में पत्ते कितने कम होते हैं और ऊपर सिरे पर एक छत्री सी बनाते हैं। इनकी जड़ें बहुत लम्बी होती हैं, जो पृथ्वी के भीतर दूर तक चली जाती हैं, और भीतर से तरी लेती हैं। इन वृक्षों की पीड़ों पर सूखी २ पपड़ी के समान छालें होती हैं जो अधिक गर्मी से उनकी रक्षा करती हैं।
भारतवर्ष में बहुत से पौदे और वृक्ष ऐसे होते हैं जो भिन्न २ ऋतुओं में पनपते हैं। गरम ऋतु में पनपनेवाले वृक्ष और पौदे शरद् ऋतु में सूख जाते हैं और उन पर एक भी पत्ता नहीं रहता। ऐसी ही दशा शरद् ऋतु के पनपनेवाले वृक्ष और पौदों की है। वे गरम ऋतु में बिल्कुल सूख जाते हैं। ऐसे वृक्ष 'मौसमी पेड़' या 'ऋतु-वृक्ष' कहलाते हैं।