पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/११३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०७
पेरू का प्राचीन सूर्य-मन्दिर


जो शङ्कराचार्य से परास्त किये जाने पर सौर, गाणपत्य और कापालिक आदि मतो के अनुयायी देशत्याग करके अमेरिका चले गये हों और वहाँ अपनी विद्या और सभ्यता से पेरू के प्राचीन निवासियों को अपने धर्म की दीक्षा देकर राजा हो गये हो ? बौद्ध लोगों का चीन, जापान, तिब्बत लङ्का, कोरिया, सुमात्रा, जावा और बोर्नियो आदि देशों और द्वीपों को जाना तो सिद्ध ही है। इसलिए सूर्य और गणपति आदि के उपासकों का अमेरिका जाना असम्भव नहीं। कपक और मानको आदि शब्द संस्कृत के अपभ्रश जान पड़ते हैं।

पेरू में जहाँ प्राचीन नगर और इमारते' थी, वहाँ खोदने पर हज़ारो वर्ष के पुराने बर्तन, कारागार, मन्दिर, मकान और मूर्तियाँ निकली हैं। कुछ मूर्तियाँ तो बहुत ही सुन्दर और बहुत ही बड़ी है। इस देश की मूर्तियों से वे बहुत कुछ मिलती हैं। इससे जान पड़ता है कि पेरू के प्राचीन निवासी मूर्तिपूजक थे। जहाँ तक पता लगा है, जान पडता है, उनकी सम्पत्ति की सीमा न थी। सोना और चांदी मिट्टी- मोल था। प्राचीन इन्का लोगों ने अपने मन्दिर बनाने में अपरिमित धन व्यय किया था। इन्का लोगों के मन्दिरों मे सूर्य का एक मन्दिर बहुत ही विशाल और बहुत ही आश्चर्यमय था। वह इन्काओ की राजधानी कज़को नगर में था। इस मन्दिर का विध्वंस स्पेनवालों ने कर डाला। जहाँ पर यह था वहाँ, इस समय, एक गिर्जाघर