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प्राचीन चिह्न


विद्यमान है। इस मन्दिर का नाम कोरीकञ्चा था। कोरी- कश्या का अर्थ “सुवर्ण स्थान" है। इस नाम में कश्या शब्द संस्कृत ‘काधन' (सोना) का अपभ्रंश जान पड़ता है। इससे भी अनुमान होता है कि संस्कृत जाननेवाले लोगों ही ने इस मन्दिर को निर्माण कराया था। इस सूर्य-मन्दिर के जो वर्णन आज तक मिले हैं उससे जान पड़ता है कि ऐसा भव्य मन्दिर शायद पृथ्वी की पीठ पर दूसरा न रहा होगा। उसमे सूर्य की एक प्रतिमा थी और वह सूर्य ही के समान देदीप्यमान थी। सूर्य की यह प्रकाण्ड मूर्ति मन्दिर की पश्चिमी दीवार पर थी। मूर्ति बिलकुल सोने की थी। इस मूर्ति से सुवर्ण की प्रकाशमान किरणें चारों ओर फैली रहती थी। मन्दिर में, इसके सिवा और अनेक देवताओ की भी सैकडों सुवर्ण-मूर्तियाँ थी। आभूषणों की तो बात ही नहीं, पूजा और प्रसाद आदि के बड़े-बड़े वर्तन भी सब सोने ही के थे। जिस समय असल सूर्य की दीप्तिमान किरणे सव ओर इस मन्दिर पर पड़ती थी उस समय वह सारा भवन दिव्य प्रकाश और दिव्य प्रभा का पुज हो जाता था। सूर्य की मनोमोहिनी मूर्ति के नीचे सोने की बहुमूल्य कुरसियो पर पुराने इन्काu राजाओ की प्रतिमाये रक्खी थी। मन्दिर के आँगन मे छोटे- छोटे और भी कई मन्दिर थे। इन छोटे मन्दिरों में चन्द्रमा और शुक्र का मन्दिर औरों की अपेक्षा अधिक शोभाशाली था। इन सब मन्दिरो मे भी सोने और चॉदी का काम था।