किसी समय विसूवियस पहाड़ के पास इटली मे एक नगर पाम्पियाई नाम का था। रोम के बड़े-बड़े आदमी इस
रमणीय नगर मे अपने जीवन का शेपाश व्यतीत करते थे।
हरएक मकान चित्रकारिया से विभूषित था। दुकाने इन्द्र-
धनुष के समान तरह-तरह के रङ्गो से रॅगी हुई नगर की शोभा
को और भी बढ़ा रही थी। हर सडक के छोर पर छोटे-
छोटे तालाब थे, जिनके किनारे भगवान् मरीचिमाली के उत्ताप
को निवारण करने के लिए यदि कोई पथिक थोड़ी देर के
लिए बैठ जाता था तो उसके आनन्द का पार न रहता था।
जब लोग रङ्ग-बिरङ्गे कपड़े पहने हुए किसी स्थान पर जमा
होते थे तब बड़ी चहल-पहल दिखाई देती थी। कोई-कोई
सङ्गमरमर की चौकियो पर, जिन पर धूप से बचने के लिए
पर्दे टॅगे हुए थे, बैठे दिखाई पडते थे। उनके सामने सुस-
ज्जित मेज़ो पर नाना प्रकार के स्वादिष्ट भोजन रक्खे जाया
करते थे। गुलदस्तों से मेजे सजी रहती थी। यह कहना
अत्युक्ति न होगी कि वहाँ का छोटे से छोटा भी मकान सुस-
जित महलों का मान-भड्ग करनेवाला था। वहाँ का झोपड़ा
भी महल नही, स्वर्ग था।
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