तरह पिघली हुई चीज़े ज्वालामुखी से बह निकलीं। उन्होंने
पाम्पियाई का सर्वनाश आरम्भ कर दिया। मिहमान भोजन-
गृह में, स्त्री पति के साथ, सिपाही अपने पहरे पर, कैदी कैद-
खाने में, बच्चे पालने में, दुकानदार तराज़ू हाथ में लिये रह
गये। जो मनुष्य जिस दशा मे था वह उसी मे रह गया।
बहुत समय बाद, शान्ति होने पर, अन्य नगरवासियों ने वहाँ
आकर जो देखा तो सिवा राख के ढेर के और कुछ न पाया।
वह राख का ढेर खाली ढेर न था । उसके नीचे हज़ारो मनुष्य
अपनी जीवनयात्रा पूरी करके सदैव के लिए सोये हुए थे। हाय!
किस-किस के लिए कोई अश्रुपात करे ? यह दुर्घटना २३
अगस्त ७९ ईसवी की है। १९४५ वर्ष बाद जो यह जगह
खोदी गई तो जो-जो वस्तु जहाँ थी वही मिली।
यह प्रायः सारा शहर का शहर पृथ्वी के पेट से निकाला गया है। अब भी कभी-कभी इसमे यत्र-तत्र खुदाई होती है और अजूबा-अजूबा चीज़े निकलती हैं। पाम्पियाई मानो दो हज़ार वर्ष के पुराने इतिहास का चित्र हो रहा है। दूर-दूर से दर्शक उसे देखने जाते हैं।
[आकृोबर १९११
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