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तीस लाख वर्ष के पुराने जानवरों की ठठरियाॅ


उससे १९०६ में न्यूयार्क के अजायबघर के प्रबन्ध-कर्ताओ ने खरीद लिया।

दूसरी ठठरी डकोटा रियासत की मोरो नदी के पास मिली थी। इसे अध्यापक कोप नाम के एक साहब के आदमियों ने, १८८२ में, पाया था। उन्होंने बडी मुशकिल से, बहुत कहने-सुनने पर, इसे अजायबघरवालो के हाथ बेचा ।

ट्रेचोडोंट जानवर की गिनती रेगनेवाले जीवो में है। उसकी अगली टॉगें बहुत छोटी हैं। पर पिछली टॉगे और पूँछ खूब लम्बी हैं। दांतों की बनावट से मालूम होता है कि यह जानवर मांसभक्षी न था; किन्तु फल, मूल, घास, पात आदि खाकर जीवन-निर्वाह करता था। इसका मुंह फैला हुआ होता था और बत्तख की तरह चौड़ी चोच भी होती थी, जो एक हड्डीदार गिलाफ़ से ढकी रहती थी। उसके मुँह मे सब मिलाकर दो हजार दॉत होते थे।

शरीर के अगले भाग की अपेक्षा पिछला भाग छः गुना अधिक बडा था। कद और पैर की हड्डियां के आकार से जान पड़ता है कि वह तौल मे बहुत भारी न होता था । ठठरियों में अगले पैर के सिर पर चार अँगुलियाँ हैं। पर अँगूठा बहुत छोटा है। स्थूलाकार पिछली टॉगो में तीन लम्बी-लम्बी उँगलियाँ हैं, जिनके सिरे खुर की तरह जान पड़ते है। जब यह खडा होता था तब इसकी उंचाई सत्रह फुट होती थी।