पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/१३

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साॅची के पुराने स्तूप


देख पडते हैं। इन खंडहरों मे १० स्तूप, एक चैत्य, गुप्तवंशी राजाओं के जमाने का बना हुआ एक मन्दिर और एक-विहार-इतनी इमारतों के भग्नावशिष्ट हैं। अशोक के ऊँचे-ऊँचे स्तम्भों के भी कुछ अंश यहाँ पर पड़े हैं। इन पर अशोक की घोषणा के कोई-कोई अक्षर अब तक देख पड़ते हैं। चीन के परि-ब्राजक यात्री फाह्यान ने सॉची का नाम “शा-ची" लिखा है । उसका कथन है कि जब वह इस देश मे आया तब सॉची एक बहुत बड़ा राज्य था। वह कहता है कि साँची वह जगह है जहाँ पर गौतम बुद्ध ने पवित्र पीतपर्णा के पेड़ को लगाया था। यह पेड़ हमेशा सात फुट ऊँचा बना रहता था और यदि काट भी डाला जाता था तो फिर बढ़ जाता था।

पानी मे उठनेवाले बुलबुलों की तरह मनुष्य-जीवन नश्वर समझा गया है। जीवन की नश्वरता का स्मरण दिलाने के लिए बौद्धों ने जितने स्तूप बनाये हैं, सब बुलबुलों की शकल के बनाये है। साँची का सबसे बड़ा स्तूप भी उसी शकल का है। वह मॉची की पहाड़ी के पश्चिम है। उसके भीतर रक्खी गई कोई भी स्मारक वस्तु आज तक नहीं पाई गई। इससे अनुमान होता है कि यह स्तूप आदि बुद्ध की यादगार में बनाया गया है। इसके चारों दरवाज़ों पर बुद्ध की चार मूर्तियाँ हैं। इससे यह बात और भी अधिक दृढ़ता से अनु- मान की जाती है। नेपाल मे यह नियम है कि इस प्रकार के स्तूपों के दरवाजे पर बुद्ध की मूर्तियो अवश्य रक्खी जाती