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साँची के पुराने स्तूप

बिदा होना, तपस्या करना, बोधिवृक्ष के नीचे बोधिसत्वता को पाना, उपदेश करना और अन्त मे निर्वाण को पहुँचना—इत्यादि शाक्य मुनि के जीवन की सारी घटनाये बड़े ही कौशल से मूर्तियों के रूप मे दिखलाई गई हैं।

कही-कहीं पर वृक्षों की, पशुओं की और स्वयं स्तूपो की पूजा की जाने के भी चित्र इस स्तूप में हैं। रामग्राम नामक नगर में एक स्तूप है। उसकी मूर्ति यहाँ बनी हुई है। उसे हाथी, अपनी सूंड़ में पानी ला-लाकर, साफ़ कर रहे हैं और झाड़ से उस पर की खाक झाड़ रहे हैं। बरगद का एक वृक्ष है। वह एक मन्दिर से घिरा हुआ है। उसकी दाहिनी ओर, पूजा के लिए अपने सेवक-समूह के साथ एक राजा बैठा है। बाई ओर दैत्य हैं; घोड़े और हाथियों पर सवार राजा के सैनिक उनको कुचलते हुए चले जाते हैं । यह बड़ा ही विलक्षण दृश्य है। सैकड़ों मूर्तियाँ आकाश की तरफ़ हाथ उठाये प्रार्थना कर रही हैं। मनुष्य का जैसा सिर लगाये भेड़ और शेर इधर-उधर झॉक रहे हैं; शाक्य मुनि का चिह्न, चक्र, ठौर- ठौर पर, अपने बनानेवालों के शिल्पकौशल की प्रशंसा सी कर रहा है। हिरनों के झुण्ड के झुण्ड भागते हुए, कहीं- कहीं, दिखाई दे रहे हैं। दक्षिणी तोरण के ऊपर एक शहर के घेरे जाने का दृश्य बड़ा ही मजेदार है। यह धर्मयुद्ध का एक दृश्य है। गौतम बुद्ध की कुछ अवशिष्ट चीज़े छीनना है। इसी लिए यह युद्ध छिड़ा है और शहर को घेरना पड़ा